Boni kapoor's Mili.

आपने इरफ़ान की लाइफ ऑफ पाई, राजकुमार राव की ट्रैप्ड, या फिर हॉलीवुड की कई ऐसी फिल्मों को देखा होगा जिसमें एक्टर किसी ऐसी स्थिति में फँस जाता है, जिसमें कोई सामान्य आदमी तो सर्वाइव नहीं कर सकता, जैसे बिना खाये पिये महीनों जिंदा रहना, किसी छोटे से सुरंग या बोर वेल में किसी बच्चे का फँस जाना, कुछ इसी तर्ज पर आधारित है बोनी कपूर की "मिली"

"मिली" को डायरेक्ट किया है Mathukutty Xavier ने, इस फ़िल्म को प्रोड्यूस किया है बोनी कपूर ने,और इस फ़िल्म के मुख्य किरदार की भूमिका निभाया है जाह्नवी कपूर ने। 

जाह्नवी कपूर से जब द एक्टर अड्डा 2022 पर पूछा गया कि 'was there a scene in a film you did this year which felt like a life and deth?' तब वो Mili का जिक्र करती हैं। अगर कोई एक्टर अपनी उस फिल्म को आगे रखता है जिसने कुछ ज्यादा नहीं किया, एक ऐसी फिल्म जिसे मिला जुला रेस्पॉन्स मिला हो। तो उस एक्टर के द्वारा किये गए कार्य को देखने का मन जरूर करता है। 'Mili', Netflix India पर 4 नवम्बर को रिलीज होती है और मिला जुला रेस्पॉन्स पाती है।

फ़िल्म का 40 से 45 मिनट, फ़िल्म की भूमिका बनाने में खर्च की जाती है। फ़िल्म का बाकी हिस्सा उस कहानी को दिखाता है जिसके लिए यह फ़िल्म फिल्मायी गयी है। 

जाह्नवी ने mili नाम की उत्तराखंड की लड़की का किरदार निभाया है, जो एक मॉल में काम करती है और अपने पिता यानी कि मनोज पाहवा के साथ रहती है उनका ख़्याल रखती है। mili का एक बॉयफ्रेंड भी है, जिससे वह बेहद प्यार करती है, पर वह लड़का गैरजिम्मेदार है। इस वजह से वह थोड़ा... साथ में कुछ और किरदार भी हैं, और स्पेशल गेस्ट के रूप में जैकी श्रॉफ भी मौजूद हैं। जिनका छोटा सा सीन आपको उनके कामों के पुराने अनुभव को दिखलायेगा। 

फ़िल्म में कई तरह के सोशल मैसेज भी दिए हैं जैसे- एक mili नाम की लड़की का 'समीरा' नाम की फ्रेंड होने पर पिता का यह कहना कि बेटा जी दोस्त तो अपनों में भी हो सकते हैं? जिस पर जान्ह्वी भी पलटकर कहती है कि 'कौन अपना कौन पराया, सब माया ' आप ही न व्हाट्सएप्प पर भेजें थे। फिर पिता का पलटवार की 'अपने तो अपने होते हैं न? बेटा जी?' 

हम और हमारा समाज अभी भी इस बात की इतनी फिक्र करता है कि हमारे दोस्त हमारे ही कॉम्युनिटी के हों। यह खोखला समाज व्हाट्सएप्प के फॉरवर्ड में भी सिर्फ अपने मतलब की ही बातों को अपना बनाता है। वहाँ भी आँख मूँदकर सबकुछ अपना नहीं लेता, वहाँ भी यह एक फ़िल्टर लगा रखा है यह मेरे मायने के हैं ये नहीं हैं। कोई किसी को नहीं बहकाता, हम मनुष्य ही अपने चारों तरफ अपने जैसों की भीड़ खड़ा कर लेते हैं।

आगे इसी सीन में एक और बात होती है जब पिता mili से कहते हैं कि ये स्किम तुम्हरी समीरा खरीदेगी? तो mili का जबाब होता है कि 'क्यों पापा, आप बेचिए न स्कीम अपनों में। अपने तो अपने होते हैं न?

यह छोटी-छोटी चीजें कोई बड़ा बदलाव नहीं लाने वाली हमारे समाज में, पर पत्थर जैसा होते जा रहे इस समाज में एक सुराग तो जरूर होगा।  डायरेक्टर और फ़िल्म निर्माण से जुड़े लोगों को इस तरह का प्रयास सतत जारी रखना चाहिए। इस सुराग से ही फिर एक दिन एक नई धारा बहेगी।

इस फ़िल्म की सबसे खास बात फ़िल्म के शुरू और अंत में दिखाए गए उस चींटी की रही। कैसे चींटी आगे-आगे जाती है और कैमरा तस्वीरों से होते-होते पूरी कहानी बतला देता है। दरअसल यह फ़िल्म किसी mili की कहानी नहीं थी। यह उस चींटी की कहानी थी जो फ्रीजर में रखे पानी में फंस जाती है और लंबे संघर्ष के बाद फ़िल्म के अंत में फ्रीजर से बाहर निकलती है। Mathukutty Xavier का यह प्रयोग मुझे बहुत पसन्द आया, पूरी फिल्म एक चींटी के माध्यम से यूँ कहना शानदार लगा। 
हर फिल्म में कुछ न कुछ देखने लायक होता, बस उसे खोदकर निकालने की जरूरत होती है।( अपवाद हर जगह होते हैं।)

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Comments

  1. Badiya...padh kr accha laga..film dekhen ka man hai... koshish rhegi dekhne ki

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    1. जरूर, कुछ चीजें अच्छी हैं, जरूर देखें।

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