फिल्म:- बर्लिन (Berlin) zee5
फिल्म:- बर्लिन Berlin जो चुप होते हैं, उनकी भी एक कहानी होती है. बस
उन्हें भी कोई सुनने वाला चाहिए...
जो अच्छी शिक्षा और सालों की ट्रेनिंग के बाद भी किसी एजेंट में नहीं था, वो
अशोक कुमार में था. और यही उन सभी सीक्रेट एजेंट के लिए ईष्या का विषय था. राज का
पता चल जाना और अपनी जान बचाना दूसरे नंबर पर आता है. फिल्म बर्लिन के तीन मुख्य
किरदार हैं, पुष्किन वर्मा, जगदीश सोढ़ी, और अशोक कुमार. अशोक कुमार का किरदार न तो
सुन सकता है और न ही बोल सकता है, पर उसका दिमाग बाकी एजेंटों की तुलना में ज्यादा
शार्प है. दरअसल यह फिल्म 1993 के साल पर आधारित है. जब भारत का संबंध अमेरिका के
साथ कुछ ज्यादा ठीक नहीं था. लेकिन रसिया के साथ भारत का अच्छा रिश्ता था. भारत ने
उस दौरान कई व्यापारिक रिश्ते रसिया के साथ कायम किया थे. जिसमें आधुनिक हथियारों
की खरीद बिक्री भी शामिल था. लेकिन ये बात हमेशा से ही अमेरिका जैसे राष्ट्र को
पसंद नहीं रहा है. अशोक कुमार एक ऐसी जगह पर काम करता था जहां रोजना कई सारे
सीक्रेट एंजेट और एजेंसी के लोग आते थे. अशोक जैसे मूक वधिर लोगों को यहां इसीलिए
काम दिया जाता था कि वो दो सीक्रेट एजेंट के डील को न सुन सकें, और न ही उसका जिक्र
कहीं और कर सके. लेकिन अशोक कुमार बाकियों से अलग था. वह भी सुन, बोल नहीं सकता था
लेकिन देख सकता था. और अपने दीमाग में अपनी एक अलग ही कहानी बुन सकता था. अशोक
छोटी- छोटी चीजों पर गौर कर, छोटे- छोटे इशारों, बेकार कागजों- दस्तावेजों को
इकट्टा कर अपनी कहानी बुनता था. और वो कहानी कैसे एजेंट की असली कहानी से जा मिली
इसी पर पूरी फिल्म है.
इस फिल्म का ज्यादा से ज्यादा सीन इंटैरोगेशन का है. जिसमें एक साइन लैंग्वेज का
टीचर यानी की पुष्किन वर्मा एजेंट जगदीश सोढ़ी की तरफ से अशोक कुमार से सवाल जवाब
करता है. और फिल्म फ्लैशबैक में जाकर घटनाओं को दिखाती है. और साथ ही साथ कुछ
वर्तमान के सीन को जोड़ती है. जिसमें दो सीक्रेट एजेंसियों के बीच चलने वाले
कॉम्पीटिशन को दिखाया जाता है.
फिल्म में पुष्किन वर्मा(साइनलैंग्वेज- टीचर) का किरदार अपारशक्ति खुराना ने निभाया
है. जगदीश सोढ़ी(एजेंट) का किरदार राहुल बोस ने निभाया है और अशोक कुमार का किरदार
इश्वक सिंह ने निभाया है. अपारशक्ति खुराना ने अपनी अच्छी एक्टिंग का लोहा जुबली
जैसी फिल्मों में पहले ही मनवा रखा है. और राहुल बोस तो काफी लंबे समय से स्क्रीन
पर दिखते आ रहे हैं. लेकिन इस बार अशोक कुमार का किरदार निभा रहे इश्वक सिंह को
काफी अच्छा समय स्क्रीन पर अपना अभिनय दिखाने को मिल रहा है. और इश्वक सिंह ने काफी
अच्छा अभिनय एक मूक- बधिर का निभाया है. आप इस बात को ऐसे समझिए कि एक सीन में अशोक
कुमार ने थोड़े से गुस्से और ढ़ेर सारे झुंझलाहट को दिखाने के लिए अपनी जीभ से एक
अलग तरह की आवाज निकाल रहे हैं और सामने रखे टेबल पर जोर- जोर से हाथ पटक रहे हैं.
एक मूक जब अपनी बात नहीं समझा पाता तो वो कैसे रिएक्ट करता है. ये उन्होंने बखूबी
समझाया है. बीते दिनों मैं एक मूक बधिर से बात कर रहा था. और मैं अच्छे से उसकी बात
नहीं समझ पा रहा था. तब जो उसकी झुंझलाहट थी, वहीं झुंझलाहट मुझे अशोक के किरदार ने
दिखाया. जिससे पता चलता है कि कैसे इश्वक सिंह ने एक मूक किरदार के बारे में अच्छे
से जानकारी जुटाई है. उनकी मेहनत वहां और पूरे फिल्म में साफ दिखाई देती है.
CINEMA KA 'C'- CINEMATOGRAPHY
इस फिल्म के लेखक, डायरेक्टर और डॉयलोग राइटर के साथ- साथ प्रोड्यूसर भी अतुल
सब्रवाल हैं. अतुल सब्रवाल ने इससे पहले जुबली जैसी आर्ट फिल्मों में काम किया है.
साथ ही अतुल को फिल्म औरंगजेब के लिए बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर का भी अवॉर्ड मिल चुका
है. चूंकि फिल्म के सभी चीजों से जुड़े होने के कारण इसका असर फिल्म पर दिखता है.
फिल्म की कहानी की लिखावट में कसवाट तो है ही. डायरेक्टर का सीनमेटोग्राफर( Shree
Namjoshi) के साथ भी अच्छी बनी है यह भी देखने को मिलता है. उदाहरण के लिए एक सीन
है- जिसमें इंटैरोगेशन के दौरान अपारशक्ति खुराना का किरदार थोड़ी देर तक मॉनोलॉग
करता है. और कैमरा में तीनों किरदार एक के बाद एक करके सामने आते हैं, जैसे ही
संवाद खत्म होता है, तीनों किरदार एक-एक कर ब्लर हो जाते हैं. इसमें सीनमेटोग्राफर
की क्रिएटिविटी दिखती है. एक और सीन है जिसमें पहली बार अशोक कुमार पाकिस्तानी
फिमेल एजेंट को देखता है. इस सीन में सीनमेटोग्राफर ने दो पिलर के बीच में अशोक
कुमार को खड़ा कर गजब का स्क्रीन कंपोजिशन बनाता है. जो वाकई उस किरदार को वहां पर
स्पेस देता है. ऐसी कई चीजें हैं, जिसमें सीनमेटोग्राफर का कमाल काम देखने को मिला.
पूरी फिल्म में देखें तो सीनमेटोग्राफी के बेसिक फॉर्मूले का इस्तेमाल किया गया है.
जैसे पूरे सीन में एक बार में एक ही किरदार है और बाकी की जगहों को खाली छोड़ा गया
है. जिससे दर्शकों की आंखों को वो सीन सुकून देता है. न कोई ताम झाम, न ही कोई
कैमरे का उल्टा सीधा प्रयोग, कैमरे के बेसिक फॉर्मूले से बेहतरीन काम सीनमेटोग्राफर
ने कर के दिखाया है. अब थोड़ी सी बात, फिल्म के कलर ग्रीडिंग से जुड़ी हुई. पूरे
फिल्म में सभी जगहों पर कोशिश की गई है कि कलर को टोन एक जैसा ही रखा जाए. लेकिन
कहीं- कहीं पर एक दो फ्रेम में कलर ग्रीडिंग चेंज हो जाता है. जो आंखों पर खटकता
है, यहां पर मैं एडीटर को कहूंगा की अपनी अगली फिल्मों में इन बातों का ध्यान दें,
उदाहरण के लिए एक सीन है अपार शक्ति खुराना परेशान होकर ब्लिंडिंग के बरामदे पर चल
रहे हैं. यहां पर सीन का कलर सफेद लाइट में ब्लू मिक्स रात का सीन बनाया गया है.
लेकिन अगले ही पल अपारशक्ति पीली लाइट में जाते हैं और वहां भी एक दो सेकेंड के लिए
सीन का कलर वैसा ही रहता है, और अगले 2 सेकेंड बाद कलर टोन चेंज होता है. और वो
चेंज होता हुआ मुझे दिख जाता है. हालांकि ये माइनर गलतियां हैं. लेकिन उस सीन में
ये होना चाहिए था कि जैसे ही अपारशक्ति खुराना एक लाइट से दूसरे लाइट में जाते हैं
और एंगल चेंज होता है. वहीं पर सीन का कलर टोन चेंज हो जाना चाहिए था.
अंत में यही कहूंगा... जिसे कभी नहीं सुना गया, जो हमेशा चुप रहते हैं. लोग उन्हें
भी और खामोश कर देते हैं. जिसने कभी किसी से ठीक से अपनी बात नहीं की, उसे कुछ देर
के लिए किसी ने सुन ही क्या लिया. लोगों को इस बात से भी परेशानी हो गई. जो हमेशा
चुप रहा, वो आगे भी चुप रहेगा, क्योंकि आपने उससे उसकी जुबान एक बार फिर छीन
लिया....
फिल्म जी5 पर आई है. एक बार देखिए और मुझे भी बताइये कैसी लगी...
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