"शेष मैं हूँ" और कुछ किताबें

"शेष मैं हूँ" और कुछ किताबें दिल्ली आए हुए 4 साढ़े 4 साल हो चुका है। आज से मैं अपना भार खुद उठाने जा रहा हूँ। मतलब यह कि मैं अपना कमरा बदल रहा हूँ। यहीं एक सवाल है मन में कि एक आदमी जिस कमरे में रहता है क्या उसे हम घर कह सकते हैं। एक कमरे में एक इंसान है क्या वह घर है? इसका जबाब आप लोग दें। अब आगे की अपडेट, जामिया ने कहा है कि वो हमारे अगले सेमेस्टर की पढ़ाई ऑफलाइन शुरू करने जा रही है। कब से? यह अभी भी क्लियर नहीं हुआ है। जबकि बाकी सभी डिपार्टमेंट की पढ़ाई शुरू हो चुकी है। इसलिए मैंने अपना कमरा नॉर्थ से साउथ शिफ्ट कर लिया। इससे पहले मैं अपने एक मित्र (मेरे सीनियर) रौशन भैया के साथ अब तक मतलब साढ़े 4 साल दिल्ली में साथ रहा। अब मैं उनसे बिछड़ रहा हूँ। बिछड़ना हो सकता है कि फायदेमंद हो पर यह तकलीफ़ बहुत देती है। जो कि महसूस हो रही है। कोई मुझसे पूछ देता है कि रौशन से अलग हो रहे हो? तो मेरे अंदर का सारा पानी सूख जाता है। कभी यह संभव है कि मैं उससे बिछड़ सकता हूँ, अलग हो सकता हूँ, नहीं ऐसा नहीं होगा। जब भी कोई ऐसा व्यक्ति जो मुझे और रौशन को जानता हो। वो अगर मुझे रसोई में काम करते देखेगा। तो उसे मुझमें रौशन भैया की ही छाया नजर आएगी। अभी मैं मेट्रो में बैठ यह लिख रहा हूँ और बार-बार मुझे अपनी आँखें पोछनी पड़ रही है। मैं अभी क्या महसूस कर रहा हूँ मैं लिख नहीं सकता। मुझे लग रहा है जैसे मैं अपने सिर पर से किसी का हाथ हट जाने जैसा महसूस कर रहा हूँ। हम जब साथ थे तो ऐसा नहीं था कि हम हमेशा एक मत ही होते थे। हम दोनों के स्वभाव में भी आसमान और ज़मीन का फ़र्क था। एक जिसके सौ दो सौ दोस्त होंगे। वहीं मेरे पहचान के भी 10 लोग नहीं होंगे। जिनसे भी मिला दिल्ली में उन्हीं की वजह से मिला। चाहे वो सीनियर हो जूनियर हो। सब से भैया ने मिलवाया। आज मेरी पहचान दिल्ली में असलियत में उनकी ही पहचान है। मैं याद करता हूँ वह दिन जब वह मुझे लेने घर आये थे। मैं एक ऐसा लड़का था जिसमें एक आवारा लड़का होने के सभी दुर्गुण मौजूद थे। चाहे वो सड़क पर आवारागर्दी हो, या बाइक पर लफंगे की तरह टहलना। यही सब मेरे काम थे। उस दिन से आज तक अभी तक भैया ने जितना सिखाया है और मदद की है। शायद कोई अपना भी नहीं करता। कुछ लोग सिर्फ अच्छे होते हैं। जो सिर्फ अच्छे ही होते हैं। उनमें खामियां भी होती हैं। वो गलती भी करते हैं। पर उन्होंने आपके जीवन में कुछ ऐसा अमूल चूल परिवर्तन कर दिया होता है कि हम उसके आभारी हो जाते हैं। अब आगे का जीवन कैसा होगा? इसका जबाब मेरे पास नहीं है। मैं कैसे खाना बनाऊँगा, क्या खाऊंगा इन सब बातों को हवा में छोड़ दिया है और आगे बढ़ गया हूँ। मैंने कभी नहीं सोचा था कि भैया से दूर होना पड़ेगा। दूर तो नहीं हो पाऊंगा। पर उन्हें बहुत मिस जरूर करूँगा। फिलहाल इतना ही कहने के लिए है। आगे लिखना मुश्किल है। कल प्रिंस भैया ने एक बात कही थी:- उन्होंने कहा था कि गीता में लिखा है(मैंने नहीं पढ़ा है।) इसके लिए हमेशा तैयार रहो। एक ही चीज निश्चित है और वह है परिवर्तन ( गीता से) शुक्रिया, आभार आप बड़े भाईयों का, आगे के लिए आप लोग जरूर आशीर्वाद दें।

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