जामिया कॉर्नर 2
जामिया कॉर्नर
जामिया में मेरी एक दिनचर्या है। इसके बारे में लिखने के लिए मैंने एक नाम सोचा है। आगे मैं इसी नाम "जामिया कॉर्नर" से लिखूँगा। जिसमें जामिया में मेरे बीते दिन या किसी घटना के बारे में बात करूँगा।
आज क्लास में मैं दस मिनट देर से पहुँचा। सर् ने सिनेमा पर कुछ-कुछ बातें शुरू कर दी थी। मेरे पहुँचने से पहले सर् ने कल की कुछ बातों को दुहराया और आगे की टॉपिक पर बढ़ने लगे थे। आज हमने सिनेमा संस्कृति से जोड़कर देखने का प्रयास किया। यह एक नया अनुभव था। मैंने सिनेमा को इस तरह से आज से पहले न कभी सुना था। न इस पर बात करने के लिए सोचा था। हमने उत्सवधर्मिता से नाट्यशास्त्र और फिर सिनेमा तक के सफर पर एक निगाह डाला। हमने चर्चा के दौरान CSR कॉरपोरेट सोशल रेस्पोंसबिलिटी और इंटरकास्ट मैरेज के आँकड़े साथ ही मालिक मो. जायशी रचित पद्मावत पर भी नजर डाली। अच्छी बात-चीत चल रही थी। हमारी क्लास कमरा संख्या 204 में चल रही थी। पर इस कक्षा की एक समस्या है कि इसमें खिड़की से आवाज़ आती है सड़क पर चलने वाली गाड़ी और मेट्रो का। अगर ज़ामिया के इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करें तो हिन्दी विभाग दयनीय स्थिति में है। न पँखे हैं, न ठीक तरह के बैठने का व्यवस्था। एक बात और मूलभूत चीजें भी नहीं हैं। जैसे की वाटर कूलर, पानी पीने के लिए एक भी वाटर सिस्टम काम नहीं करता। यह सच है एक भी हिन्दी विभाग संस्कृत विभाग का काम नहीं करता। एक क्लास इतने गंदे और छोटे हैं कि आदमी का दम घुट जाए। दीवार पर से पेंट गायब है प्लास्टर झर रहें हैं। दो दिनों से प्यून को कह रहा हूँ कि डस्टर और चॉक दे जाओ। दे नहीं रहा है। मतलब यह कहना है कि जामिया की शिक्षा व्यवस्था बस छात्रों के अपने मेहनत पर टिका हुआ है। बदलाव करने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है और किससे अपनी समस्या कहा जाय नहीं पता। दो दिन हो गए क्लास शुरू हो गयी चारों क्लास एक ही शिक्षक लें रहे हैं। ऐसा किस यूनिवर्सिटी में होता है कि एक ही शिक्षक सबकुछ पढ़ा दे रहा है। अगर पढा भी रहें हैं तो छात्र कितना समझ पा रहें हैं।
मैंने दो दिनों से प्रयास किया कि हमारा थर्ड सेमेस्टर का सिलेबस क्या-क्या है वह पता चले। पर मुझे कोई जबाब अभी तक नहीं मिला है। यह दूसरा दिन है। हमारी पढ़ाई हो रही है। पर हमें क्या-क्या पढ़ना है हमें नहीं पता।
आज हमारे सी बी सी एस पेपर का भी श्री गणेश हो गया। चूँकि हमारी क्लास डॉ. विवेक दुबे लेने वाले थे। हमने उनसे बात किया था कल ही कि आप हमारी क्लास लेंगे। उन्होंने कहा कि 2.50 में कक्षा संख्या दो में कल मुलाकात होगी। आज जब मुलाकात की बारी आई तो पता चला वही नहीं आये। हम कक्षा संख्या दो के बाहर खड़े थे। जहाँ एम. हिन्दी वालों की क्लास हो रही थी। थोड़ी देर में वहाँ से सभी बच्चों को छुट्टी मिल गयी। बाहर एक शिक्षक आते हैं। हम लोग क्लास में बैठ जाते हैं। थोड़ी देर बाद वही शिक्षक आते हैं और कहते हैं कि विवेक दुबे आज नहीं हैं इसलिए मैं आपकी क्लास लूँगा। मेरा नाम नीरज कुमार है। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। और पी एच डी भी वहीं पूरी की। शुरूआत के दिनों में पढ़ाया भी वहीं। लेकिन 1994 में जामिया आया और यहीं का होकर रह गया।
हमने गद्य विधाएँ पर बात शुरू की। सबसे पहले हमने अपना परिचय दिया। फिर हमने कौन कौन सी विधाएँ इसके अंतर्गत आएंगी यह जाना। नीरज सर् से हमारी बात-चीत अच्छी रही। मैं इसे एक अच्छे अनुभव के रूप में जोड़ता हूँ।
अब मैं दुबारा अपने wifi वर्क और पानी पीने के लिए it डिपार्टमेंट में गया। वहाँ मुझे मदद मिला और आधा काम हो गया। बाकी का काम अगले दो दिनों में होने की संभावना है। आप बस यह सोचिए कि हमें wifi इस्तेमाल करने के लिए दो दिनों से घुमाया जा रहा है जो कि अगले दो चार और दिनों तक किया जाएगा।
मेरा बहुत सारा समय इधर-उधर घूमने में कट गया। जिसका मुझे अफसोस है। कल से उस समय के सदुपयोग के बारे में सोचूँगा। मुझे बस पास भी बनवाना था जो नहीं बनवा पाया। कल देखते हैं।
आखरी में फिर 3.40 से मीडिया शोध की क्लास शुरू हुई जो कि वही दुबे सर् ने लिया। मैं अपनी पूरी ऊर्जा के साथ उन्हें सुन रहा था। करीब ढ़ेर घण्टे बाद बोर होने लगा। और बाकी साथियों के आग्रह पर सर् ने क्लास समाप्त किया। आज सर् ने शोध की आवश्यकता, थोड़ा सा हीगल थ्योरी और फिर शारदा एक्ट पर बात किये। सर् ने शोध में सबसे पहले क्या होता है। रुचि, विषय का चयन, समय, उद्देश्य, हाइपोथीसिस, मायथोलॉजी पर बात की।
इसके बाद मैं लाइब्रेरी आया। जहाँ मैंने इंडिया टुडे पत्रिका का एन्विरोमेंट सेक्शन को पढा। बाघ की स्थिति, जंगलों की स्थिति और उसके लिए बनाए गए कानून, अधिनियम कक जाना।
अब वापसी का समय है। बस स्टॉप की तरफ बढ़ रहा हूँ...
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