समझना

                       
                          समझना

समझना का अर्थ होता है ज्ञान प्राप्त करना ,अनुमान करना ,कल्पना करना,समझौता करना,बदला लेना,चिंतन करना,गहन अध्ययन,प्रतिक्रिया करना इत्यादि।

जब हम किसी विषय को समझने की कोशिस करते है तो हमारे माथे पर शिकन उत्पन्न होता है।जिस विषय को हम समझने वाले होते है अगर उसे हम आसानी से नही समझ पाते है तो भौंऐ में सिकुड़न होती है।हमारी आँखे उस विषय को देखने के लिए उत्सुक होती है, जिसे हम समझने की कोशिस करते  है।अगर वह हमें नही दिखायी देती है तो फिर हम उसकी कल्पना करना शुरू कर देते है।और फिर जैसा हम कल्पना करते है ठीक वैसा ही हमे समझ आता है।
          'समझना' किसी भी विषय में निहित ज्ञान को ,जानकारी को वहाँ से निकालकर खुद में जगह देना समझना कहलाता है। यह एक कठिन प्रक्रिया है परंतु अभ्यासरत होने पर यह आसान हो जाता है जैसे हम साँस लेते है, दर्द होने पर आँखों से आँसू आते है। यह सब उतना ही आसान है जितना समझना।
           'समझना' अनुमान ,कल्पना का ऐसा रूप है, जो अवास्तविक है जो हवा की भांति इस संसार मे मौजूद तो है परंतु दिखायी नही देता।जब हम समझना शुरू करते है हमारे मन मे खुद व खुद उससे सम्बंधित लकीरें खींचती चली जाती है।
                                                            'समझना' समझौता करना भी है।जब हम किसी विषय पर कल्पना करते है और पूर्ण रूप से उस विषय की कल्पना नही कर पाते है तब जितना हम कल्पना कर पाते है उतना ही समझ पाते है इस हिसाब से उस समय उस विषय पर हम समझौता करते है।अधिकांशतः हम समझने की इस कला में समझौता ही करते है।
                           'समझना' कला के दौरान जब हम समझौता करते है।यह हमारे समझने की अंतिम सीमा होती है।यह हर किसी को करना पड़ता है।यह हम पर निर्भर करता है कि हम कितना देर बाद समझौता करते है और कितना समझ पाते है।
                                                           'समझौता' से पूर्व हम गहन अध्ययन करते है या चिंतन करते है,चिंतन आवश्यक होता है और गहन अध्ययन यह हम पर निर्भर करता है। यह समझौता के बाद भी किया जाता है,और फिर अपने समझने के स्तर में बदलाव दिखता है।जिस तरह से धावक का आखरी कदम, जब उसे लगता है कि वो अगला कदम नही बढ़ा सकता ,उसके बाबजूद वो एक और कदम बढ़ाता है जिसे उसकी नई क्षमता कह सकते है ठीक उसी प्रकार समझौते के बाद उस विषय पर पुनः चिंतन समझने की क्षमता को बढ़ा देता है। समझने में चिंतन आवश्यक है चाहे वो छोटे स्तर का ही क्यू ना हो।
                और अंत मे 'समझना' प्रतिक्रिया देने भी हो जाता है।जब हम किसी विषय पर गहन अध्ययन , कल्पना ,समझौता ,अनुमान सबकुछ कर उसे खुद में आत्मसात कर लेते है तो हम प्रतिक्रिया करते है। ये भी अलग अलग तरीके से करते है।कभी उस विषय पर समझना, समझौते के बाद हम उससे उत्पन्न विचार को व्यक्त कर देते है,और कभी उसे खुद में ही दबा देते है पर वो हमारे मस्तिष्क में अस्थिर रहता है यह भी समझना है। और महत्वपूर्ण हिस्सा भी।
            इस जीवन को प्राप्त करने वाले सभी सजीव को समझना आवश्यक होता है और वो प्रतिक्रिया के रूप में दिखता है।

अगर आप कुछ कल्पना कर पा रहे हो तो कॉमेंट जरूर करें।

Sachin Sh Vats

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