क़ाबर के पाँच कुमार

                    

                 क़ाबर के पाँच कुमार 



जय माँ जयमंगला

श्रद्धा जहाँ बसें माता वहीं मिले


9.21AM
24 दिसंबर 2019

जब मोबाइल डेटा on किया तो व्हाट्सअप्प पर #रायसाहब ग्रुप में वार्त्तालाप हो रही थी कि जयमंगलागढ़ (क़ाबर झील/टाल) जाना हैं। अंतिम निर्णय के लिए मेरा इंतजार हो रहा था। मैंने देखा और हामी भर दी। यात्रा का समय पहले ही एक मित्र ने 10 बजे तय कर लिया था।मेरे पास 39 मिनट थे तैयार होने के और मैं 30 मिनट में तैयार होकर 9 मिनट पहले निर्धारित स्थान पर खड़ा हो गया।(कम समय में तैयार होने का गुण कॉलेज जाने की वजह से हैं।)                                                                  इससे एक दिन पहले संध्या के समय हम सभी iti (बेगूसराय, iti) में बैठकर कुछ राजनीतिक बहस कर रहें थे।जिस बहस में मैंने कम से कम योगदान देने का मन पहले ही बना लिया था क्योंकि मैं अपने दोस्तों में हुए बदलाव को देखना चाहता था पर मैंने जितना उम्मीद किया था वो उतने पर ही सिमट कर रह गए ,कोई भी रत्ती भर भी उससे ऊपर उठ कर मुझे गलत साबित नहीं कर पाए। (रत्ती आभूषण मापने की पुरानी छोटी इकाई) वहीं बेगूसराय के बाभन होने का झूठा गौरव, योगी-मोदी का कीर्तन,राहुल का मूर्ख होना,वंशवाद,लड़कियां पर बात-चीत, एक दूसरे की प्रेमिका का खुले आम नाम लेकर चुटकी लेना,और दूसरी तरफ स्त्री सम्मान की खोखली किताबी उदाहरण। शायद ये अभी भी किताबों तक नहीं पहुँच पाए हैं, आधुनिक चीजों के इस्तेमाल कर भी आधुनिक नही हो पाए हैं।                                एक मित्र ने श्रृंगी ऋषि धामपुर जाने का सुझाव दिया था पर वो यहाँ से 70km दूर था।जब यह प्रस्ताव पिता के सामने मैंने रखा तो उन्होंने मुझे नक्सली क्षेत्र बताकर एक बार में ही मना कर दिया,और मेरी वजह से यहाँ जाना रद्द हो गया ,वैसे और एक मित्र के पिता ने ठंड की वजह से मना किया था।            दो मोटरसाइकिल और हम पाँच , हम दो मित्र CD डिलक्स पर और तीन मित्र बुलेट पर सवार होकर यात्रा की शुरुआत कर दिए।(जिस मित्र के साथ मैं था उससे खुद मैं चलाऊ इसके लिए थोड़ा बहस हुआ और फिर वो मान गया।)                                                               बुलेट और डिलक्स दोनों दो विपरीत स्वभाव की मोटरगाड़ी हैं। बुलेट जहाँ पूरी राजशाही साजो सज्जा के साथ,अपने घोड़ा,हाथी,बाजा के साथ पूरे वातावरण को ठहराकर ,दूल्हा बनकर फट फट की आवाज के साथ आगे आगे चलती हैं वहीं डिलक्स एक नयी दुल्हन के जैसे शिसक शिसक कर रोते हुए  छू छू की आवाज के साथ अपने प्राण नाथ के दिखाए रास्ते पर चलती जाती हैं।                    राजौड़ा और मंझौल बाजार के अलावा आपको गाड़ी पर से पाँव नीचे उतारने की कहीं जरूरत ही नहीं होगी।राजौड़ा से आगे बढ़ने के बाद सड़क के दोनों ओर हरे और कोहरे से आधे अधूरे दिखने वाले पेड़ ,बुलेट की करकस आवाज से जहाँ अपने ह्रदय को भेदे जाने की तकलीफ में थे वहीं डिलक्स की आवाज सुनकर उनके ह्रदय में विरह की याद आने लगी। पेड़ भी अपने पूर्वजों को याद करने लगे , कैसे वो भी सड़क के किनारे वर्षो खड़े थे और उनकी डाल सड़क पर आ गयी तो सरकार ने उसे कटवा दिया था।अपने पूर्वजों के पार्थिव शरीर को गले लगाकर जी भर के रोने तक नहीं दिया था इस अत्याचारी सरकार ने, पेड़ मन ही मन सोचने लगता है कि कितना अच्छा होता ये मनुष्य इस जहान में होते ही नही,(पेड़ो की यह बात मैंने सुन लिया था)                                                           पेड़ो के बीच से अंग्रेजी के अक्षर S तो कभी Z के रास्ते हम मंझौल पहुँचे और दायी पूरब की ओर मुड़ गए।और यह रास्ता भी गाँव के बीच से धीरे धीरे सड़कता हुआ ,बायीं ओर जयमंगलागढ़ के मुख्य द्वार पर मुड़ जाता हैं। हम सभी जय माँ जयमंगला का उच्च स्वर में उद्घोष के साथ आगे  बढ़ते जाते हैं।
                   

           श्री श्री 108 माता जयमंगला द्वार


यह मुख्य द्वार गुलाबी रंग का हैं मानो ऐसा प्रतित होता है कि माता के हाथों में मेहंदी लगी हो और माँ हाथ फैलाकर अपने भक्तों के स्वागत में खड़ी हो।हम लोग प्रवेश करते हैं मोटरगाड़ी की स्पीड 10,15 के बीच आ गयी,यहाँ से हमारे कानों में पक्षी के चहल पहल की आवाज सुनाई दे रही थी,ऐसे पक्षियों की आवाजें जिन्हें हमने आज से पहले कभी नहीं देखा था कितनो को हमने पहचाना भी नहीं। छोटी बड़ी दो पुलिया और दोनो तरफ की खूबसूरती हरियाली को देखते देखते हम माता जयमंगला के दूसरे दरवाजे पर पहुँच गए,यह दरवाजा रक्षा सुरक्षा को दिखलाता हैं द्वार के दोंनो ओर दो खूंखार शेर की प्रतिमा हैं लोगो का ऐसा मानना है कि यह माता की सेवा में हमेशा खड़े रहते है यह प्रतिमा से कभी भी जीवित होकर लोगो की मदद में खड़े हो सकते हैं।(लोगों का ऐसा मानना हैं।)

        रक्षा द्वार से आगे बढ़कर हमने मन्दिर के सामने बायीं ओर कुछ हटकर मोटरसाइकिल लगा दिया, मेरे सभी मित्र अपने जूते उतार कर मन्दिर में प्रार्थना के लिए गए, मैं रुका रहा,मैं अपने आप को स्थिर कर रहा था साथ ही अपने और दोस्तो के बैग, हेलमेट , और जूते की सुरक्षा भी कर रहा था। तभी एक मित्र मुझे अंदर ना जाता हुआ देख उसे लगा कि मैं मुसलमान हो गया हूँ , या फिर वामपंथी हूँ जो अपने धर्म को सम्मान करना नहीं जानता,छोटी छोटी दो तीन फब्तियां भी उसने मुझ पर कस दी(जब से दिल्ली गया हूँ दोस्तो परिवार वालो को ऐसा ही लगता हैं।)।वहीं एक मित्र ने मुझे अंदर जाने की छोटी सी जिद कर रहा था।जब वो लोग बाहर आये तब मैंने अपने जूते उतारे और चापाकल पर हाथ पाँव धोकर माता की प्रतिमा के दर्शन के लिये बढ़ा।    

   

                                             

 नंगे पाँव जब माता के मंदिर में पहला कदम मैंने बढ़ाया तो शरीर का हर हिस्सा अपने आप को माता के शरण में पाया,यह मेरी उस समय की मानसिक स्थिति थी। माता के मंदिर में प्रवेश के लिए हमें झुक कर छोटा होना पड़ता है जिससे माता तक हम आसानी से पहुँच सके,अंदर चाँदी की दो आँखे मुझे ,या मेरी राह देख रही थी। लोहे की छड़ के पीछे से दो आँखे अपने बेटे का इंतजार कर रही थी यह देख

                       मेरे नयन जुड़ा गए।



अब हम आगे क़ाबर झील का भ्रमण करने वाले थे मोटरगाड़ी की कमान मैंने अपने मित्र को दे दिया और अपने हाथ में अपना फ़ोन लेकर सबकी तस्वीरें लेना शुरू कर दिया। एक मित्र आगे बढ़कर नाव की चाल समझने का प्रस्ताव रखते हैं नाव की चाल को समझने के लिए अपने चाल को स्थिर कर नाव में उतरना पड़ेगा। नाविक से सही सही बात चीत बन नहीं रही थी हमें दूर का समझ कर 400,500 का डिमांड रखा,तभी मेरे मित्र ने अपने भूमिहार होने का परिचय देते हुए अपने गाँव का नाम बताया और वो 120 ,150  रुपये के बीच आ गया। मैंने भी थोड़ा बात किया और बात 80 और 100 के बीच मे हम 5 को नाव से पूरा चाँर(क़ाबर) घुमाने का फिक्स हो गया।     नौका विहार में सबसे महत्वपूर्ण चीज है सावधानी और अनुशासन मेरे दोस्त ने नाव में खड़े होने का प्रयास किया मैंने और एक मित्र ने मना कर दिया मुझे पता है वो गुस्सा हुए होंगे पर मैं छोटी सी भी गलती नाव में नही करना चाहता था। क्योंकि नाव में ना तो ब्रेक होता है और ना ही फुटपात जहाँ छलांग लगाकर खुद को सुरक्षित किया जा सके। हम सभी को नाव पर बहुत आनंद आया सबकी तस्वीरें हमने ली          
                                                  

  नाव से उतरने के बाद हमने उन्हें 100 रुपया उनका मेहताना और 20 रुपया बख्शीश के रूप में दिया , साथ ही मेरे एक दोस्त ने एक केक का पैकेट उन्हें दिया जिसे वो दूसरे दोस्त को ""भाभी भेजी है ऐसा कह रहे थे""                                                                 अब हम सभी वापस मन्दिर के दूसरे तरफ से जंगल की ओर बढ़े विशाल भूमि वाला यह क्षेत्र हरियाली की वजह से ही बहुत खूबसूरत हैं। चारों तरफ दूर दूर तक आँखों को शांति देने वाले बड़े बड़े पेड़ ,वहीं एक टावर बना था जिस पर हम सभी चढ़ कर वही केक खाये और बहुत सारी तस्वीरें यादगार के तौर पर समेट लिया।               पीपल के पेड़ के पास हमारे एक मित्र ने एक खूबसूरत नृत्य प्रस्तुत किया जिसे देख हम सभी झूम उठे। और कुछ पल आपस में बैठकर शांति से एक दूसरे की तरफ देख सुकून महसूस कर वापस होने लगे।


गाड़ी की आवाज फिर पेड़ो को नींद से जगा रही थी सड़के हमें फिर आने को कह रही थी।सिउरी पुल पर रुककर हमने जूस पिया,और फिर कांजी,(कैप्शन होटल के बगल में) में हमने चाट खाकर एक दूसरे को विदा किया।

    

यह यात्रा की पूरी कहानी मेरे साथी ,मेरे प्रिय सभी मित्रों को समर्पित हैं जिन्होंने इतने खूबसूरत यात्रा का प्रयोजन बनाया। मैंने माता से आपके उत्तम भविष्य के लिए प्रार्थना किया हैं।


जब मैं यह लिख रहा था तब मेरी दादी ने पूछा कि क्या लिख रहे हो ?? मैंने कहा क़ाबर यात्रा, तो उन्होंने मेरे दोस्तों की तस्वीर देखते हुए कहा #क़ाबर के पाँच कुमार "",जो इस यात्रा कहानी का शीर्षक हैं।

सचिन sh वत्स














      



                           

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