स्कूल से मेरी नफरत

#स्कूल से मेरी नफरत --01
     


यही अगस्त का महीना था , मैं 8th क्लास में था , छोटी दी 10th में , मैं ,छोटी दी और शालू(मेरे क्लास की साथ ही साथ मेरे घर के बगल की) तीनो स्कूल जा रहे थे। मंगलवार का दिन था ,बारिश बहुत ज्यादा हो रही थी।    
                      मंगलवार का दिन इसलिए मुझे याद है क्योंकि सिर्फ इसी दिन जाते हुए मेरे कपड़े साफ होते थे सिर्फ जाते हुए । आते हुए नही । घर से स्कूल मुश्किल से 1km की दूरी पर होगी । बारिश हुई थी जमकर हुई थी रात से ही हो रही थी , मैं खुश था आज स्कूल नही जाना पड़ेगा , और जब स्कूल का समय आया बारिश छूट गयी। जैसे जैसे बारिश छूट रही थी मेरा मुँह उतर रहा था ,कुछ देर बाद बारिश बिल्कुल छूट गयी और मेरा मुँह प्रकीर्ति के सामने हारे हुए किसान की तरह हो गया था 
                      मेरी माँ, ना जाने उसे क्या मजा आता था मुझे स्कूल भेजते हुए। कितनी दफा तो मुझे बारिश में भीगते हुए भेजा था ,आज तो बारिश भी छूट गयी थी ,मेरी दीदी और शालू पता नही इन्हें स्कूल में कौन सा खजाना मिलता था जो इन्हें स्कूल जाने में इतनी खुशी मिलती थी।
                         और एक मैं था जो स्कूल के नाम पर ही चिढ़ता था , स्कूल ना जाने की वजह यह भी थी कि मेरे शिक्षक बहुत ज्यादा निर्दयी थे , वो मुझे इतना कूटते थे इतना ज्यादा कूटते थे ,जैसे धान को  चौकी(चारपाई) पर पटक पटक कर अलग किया जाता है वैसे ही बिल्कुल वैसे ही, अब आप ही बताओ उस शिक्षक उस स्कूल में आपको अपनी इक्षा से कदम रखने का हिम्मत होगा जहां आपको रुई की तरह तूना जाय, धान की तरह अलग किया जाय,या फिर खल मूसल में जैसे गरम मसाला को कूटा जाता हो वैसे आपके अंदर से ना पढ़ने की इक्षा को पिसा जाय। बहुत मुश्किल था जीना ,हाय कितने बुरे दिन थे मेरे।(मेरी रूह अभी भी कांप जाती है )
         खैर , मैं मंगलवार पर आता हूँ,मेरे कपड़े साफ थे जो कि दीदी ने साफ किया था ,अब दीदी ही मेरे कपड़े साफ करती थी और बहुत रोने पर आयरन(प्रेस)भी कर देती थी, बारिश की वजह से हर जगह कीचड़ था हम कच्चे रास्ते से ही स्कूल जाते थे ,मुझे चलना नही आता था ,बड़ा ही बेढंगा चलता था ,पानी देख कर बगल नही होता था ,पानी मे कूद जाता था जिससे सारा पानी और लोगों पर भी पड़ता था ,जबकि दीदी मेरे ठीक उल्टा थी बिल्कुल साफ सुथरा पहनना, सही समझदारी से चलना, उसका यूनिफार्म पहले और स्कूल के आखरी दिन तक एक जैसा रहता था , 
     मेरी इस तरह के रवैया से दीदी बहुत गुस्सा होती फिर वो भी मुझे वैसे ही कूटती जैसे मेरे शिक्षक ,पर मुझे दीदी के मार का बुरा मानने का कोई हक नही था क्योंकि अगर मैं उलट कर कुछ बोलता या हाथ चलाता तो फिर घर मे पापा और माँ से अलग कुटाई होती ।और दीदी गुस्सा हो जाती तो मेरा कपड़ा कौन साफ करता कौन और ढेरों काम करता , इसलिए मैं पालतू कुत्ते की तरह चुप चाप मार खाता और गाली सुनता की , रोटी और कपड़ा भी तो मिलता है ..........।।।।

SachinSHvats...... आगे अगले पोस्ट में 🙏


#स्कूल से मेरी नफरत----02
उस दिन भी (मतलब मंगलवार) इन सभी चीजों के बीच मैं अपनी बेपसन्द जगह जा रहा था , वही स्कूल ,,, आसमान साफ था ,उस समय इस दुनिया मे मैं ही अपने आप को बदनसीब मानता था ,क्योंकि मैं जिस रास्ते से जाता था गुअरवा टोला(यादवो जी का मोहल्ला) उस टोला(मोहल्ला) में मेरी उम्र के जितने बच्चे थे कभी कोई स्कूल नही जाते थे , सब पतंग उड़ाते थे ,तास खेलते थे और ढेरों खेल खेलते थे , मैं उन्हें देखकर सोचता था काश इनके जैसे ही मेरे माता पिता होते तो मुझे भी कभी स्कूल जाना नही पड़ता , पर इतना अच्छा नसीब कहा था मेरा,
                           आसमान में पतंग उड़ रहे थे ,मुझे पतंगों से बहुत ज्यादा वाला लगाव था।मैं आसमान देख कर ही चल रहा था ,जब मेरे मैथ्स अच्छे थे 93,94 98 अंक जब मुझे मिलते थे तब मैं भी आसमान में उड़ने का ख्वाब रखता था ,साथ ही BARC  में पढ़ने का भी बहुत इक्षा था  धीरे धीरे मैथ्स में अंक कम आने लगे और मेरा सपना भी कटी पतंग की तरह धीरे धीरे ओझल हो गया , पतंग से जुड़ी हुई बहुत सारे किस्से है मेरे पास पर वो इस जगह सही नही होगी । आगे बढ़ते है 
                                                 मेरी नजर पतंग पर थी और नीचे बारिश की पानी मे मिला हुआ गोबर था , फिर क्या था मैंने केक काट दिया (गोबर में लात पर गयी) और मैं अभी भी आसमान में पतंग ही देख रहा था , मेरे साथ जो मेरी दोस्त शालू थी वो हँसने लगी ,और वही मेरी दी गुस्से से लाल हुई थी।
एक ही काम से मैं दो लड़कियों में दो अलग अलग तरह के भाव को समझने की कोशिस ही कर रहा था कि मेरी दी अपनी बायी हाथ की कलाई पर अपनी लोहे की चूड़ी (कड़ा) को समेट कर मेरे पीठ के ऊपर गर्दन पर पीछे से (मेरूरज्जू के ऊपरी सिरे)  दो तीन मुक्का बजार दिया । मैं सन्न से रह गया ,वो जगह बहुत ही कोमल होती है चोट बहुत लगती है ,दो चार मिनट के लिए तो मुझे भी होश नही रहा था। दीदी बोलती है बौआ अब ना नीचे देख कर चलना आसमान नही 
                           मैं अभी भी पतंगों को ढूंढ रहा था पर सिर ऊपर नही कर रहा था क्योंकि अभी भी गर्दन में दर्द हो रहा था मैं अपने चप्पल में ही कही पतंग ढूंढ रहा था ,आँखे भर आयी थी आंसू ज्यादा हो गए थे तो मैं उन्हें गिराने के लिए आँखे बंद की और जब तक में मैं उसे खोलता मैं किसी चीज से टकरा गया और मुझे ललाट(फ़ॉरहेड) के बीचों बीच जहाँ शिव जी की तीसरी आँख होती है वहाँ चोट लगा। और कुछ ही देर में वो शिव जी के जैसा ही उभर कर बाहर आ गया ........आगे अगली पोस्ट में 
SachinSHvats


#स्कूल से मेरी नफरत ----03☺️
मैं क्लास 7 में था , पहली घंटी(पीरियड) मैथ्स की थी ,शिक्षक :-राजेंद्र चौधरी उर्फ मकुआ sir ,मकुआ शब्द का प्रयोग हमारे यहाँ बच्चों को डराने के लिए करते है जैसे कि भूत आ जायेगा,नही तो दूध पिलो, या फिर सो जाओ नही तो झोला वाला आजायेगा।
             राजेन्द्र sir दिखने में बड़े ही बदसूरत थे बिल्कुल उनका उपनाम उनके चेहरे से मेल करता था। पर ये नाम उनके चेहरे की वजह से  नही था, दरअसल वो मैथ्स बहुत अच्छा पढ़ाते थे ,एक दम से सुलझा सुलझा कर आसान कर देते थे ,बिल्कुल माँ की तरह एक एक चरण ,एक एक निवाले की तरह ,, पुचकार पुचकार कर पढ़ाते थे । और जहाँ सवाल बनाने में बच्चे सब से ज्यादा गलती करते थे उस जगह को घेर देते थे और कहते थे कि ""एजे मकुआ पकड़तौ""जिसका मतलब यह होता था कि यहाँ सावधानी से हल करना क्योंकि सभी छात्र यही गलती करते है , यह क्रिया वो पिछले 8 ,10 साल से ज्यादा समय से कर रहे थे। जिसकी वजह से बच्चे उन्हें मकुआ sir कहने लगे । यह बात हमलोगों को अशोक पाठक sir ने बताया था क्लास 8th में
                   राजेन्द्र sir क्लास में आने से पहले सभी शिक्षकों से बात करते थे ,वो अपनी बाई काख में अटेंडेंस रजिस्टर और स्कूल फ़ी वाली डायरी रखते थे ,और दायी काख में पुल्ली(एक हाथ से छोटा दंडा) रखते थे ,और एक हथेली में खैनी(तम्बाकू)रखकर दूसरे हाथ के अँगूठे से उसे चुनाते थे, रगड़ते थे। हाउ हाउ पाठक जी सहीये कहलो बोलते हुए क्लास में आये । क्लास में घुसते ही खैनी उनकी होठ पर होता था ,
                          नियमबध तरीके से वो हाजरी (अटेंडेंस) ले रहे थे ,1,2,3..7वा मेरा था मैंने बोला यस sir मेरी हाजरी लग गयी। वो मेरी आवाज पहचानते थे मेरी आवज दूर से आई थी ,वो अपने चश्मे के ऊपर से मुझे देख रहे थे । मैं उन्हें देख कर आशुतोष के पीछे छिप रहा था , वो मन मे हूऊऊ बोल के आगे की हाजरी लेने लगे ,वो 14 पर जाकर फिर रुक गए । ये रोल no मेरे क्लास के उस इंसान का था जो आज तक दुनिया के किसी भी जगह समय से नही पहुँचा होगा , शायद पैदा भी.......
ये था मिशन sir बार बार 14 ,14 ,14 बोल रहे थे । पर वो क्लास में था ही नही , sir बोलते है कि हमको पता है ये लेट गाड़ी फिर लेट ही आएगा और जरूर आएगा ,इसलिए इसका हम बना देते है 
    मिशन का आगे कही नही जरूरत है फिर भी मेरा दोस्त है इसलिए कुछ बता देता हूं मिशन एक ऐसा लड़का था अभी भी वैसा ही है , जिसको दुनिया का सारा ज्ञान होता था , जैसे मैं कहता कि ये बेंच लगभग 5 फिट की होगी  तो उस बात को वो तुरन्त काट देता और कहता नही पौने पाँच से ज्यादा और सवा पांच के बीच मे होगी , ये सुनकर मैं सुनकर  2,4 गाली दे देता ,और आशुतोष मन ही मन देता था , मैं अगर कहता कि वो सरक पर कौन जा रहा है आशु तो मिशन बोल पड़ता मैं इसको जानता हूं ये मेरे फूफा के मौसा के दादा जी का लड़का है ,मतलब सरक पर जो भी जाता वो उसका दूर से नजदीक का कोई ना कोई होता था । मिशन कही भी समय पर नही पहुचता था , यहां तक कि 10th के प्री बोर्ड और फाइनल बोर्ड के एग्जाम में भी नही पहुँचा था । धुरफन्दी में सबका बाप था । सबको पटा कर अपना काम निकाल लेता था ।
मेरे खयाल से ये एक दो बार तो यमराज को भी चखमा जरूर देगा ।
                         खैर ,वापस क्लास में आते है राजेन्द्र sir पाइथागोरस प्रमेय पढ़ा रहे थे आधा प्रमेय पढ़ा दिए थे ,  तभी बाहर से आवाज आती है 
May I come in sir,,, sir बिना आँखे घुमाए कहते है कि आओ मिशन ............आगे अगली पोस्ट में ।
SachinSHvats


#स्कूल से मेरी नफरत -----04
मिशन क्लास में आता है ,मिशन के हाथ मे ncert की मैथ्स किताब होती है,जिसका कवर के साथ दो तीन अध्याय किसी बकरी ने चर लिया था।और उसके हाथ मे क्लासमेट् की दो पतली सी कॉपी होती थी जिसे वो पिछले साल से ही अपने साथ लेकर आता था। मिशन कॉपी खोलकर लिखना चाहता है  वो कॉपी को इधर से उधर पलट लेता है पर उसे कही भी जगह नही मिलती ,कुछ देर ढूँढने के बाद  उसे पहले पेज की याद आती है जिसमे उसका सिर्फ नाम लिखा होता है और "पहला पेज राम के लिए"  यह सिद्धांत किसने शुरू किया था पता नही, नही तो मिशन आज उसका पैर चुम लेता
मिशन को लिखने के लिए पहला पेज तो मिल गया था पर अभी उसकी समस्या खत्म नही हुई थी ,मिशन के अंदर एक और खासियत थी जिसे वो खासियत ही कहता है वो अपने जीवन मे कभी कलम नही खरीदा होगा ,सब दिन मांग कर ही लिखा था चाहे परीक्षा ही क्यु ना हो । वो अपनी केहुनी मुकुंद माधव के पेट मे घुसेड़ते हुए कहता है भाई एक कलम दो ना?मुकुंद माधव उसको देखता है और कहता है नही दूँगा और फिर लिखने लगता है ,मिशन गंदी सी शक्ल बनाकर गिड़गिड़ाते हुए मांगता है ,मुकुंद को गुस्सा आता है वो कहता है तुम पहले परसो जो कलम लिया था वो लौटाओ ,तब आज मिलेगा ,
                थोड़ा सा मुकुंद माधव की बात करते है ,मुकुंद माधव लंबे कद का लड़का था ,चेहरा साफ था,थोड़ा गोल गाल था पर अच्छा दिखता था , गाल पर दो बड़े बड़े रस वाले रसगुल्ले इतना मांस था ,मुकुंद की आँखे बड़ी थी, जिससे वो और अच्छा दिखता था
             मिशन का मुकुंद से ही बार बार कलम मांगने के पीछे भी एक कारण था ,मुकुंद माधव मेरे क्लास का उन लड़कों की टीम में था जिसका राइटिंग(लिखावट) बहुत खूबसूरत था ,इस टीम का सभी लड़का एक दूसरे से बेहतर करने की कोशिश में रहते । इस टीम में मैं भी था इस बात की आज मुझे बहुत खुशी है। और अच्छा लिखने के लिए अच्छा पेज और अच्छी कलम की भी जरूरत होती है ,मुकुंद लिंक ग्लेशियर से लिखता था उसके पास लाल ,काला, ब्लू तीनो कलम होते थे । और ये बात मिशन अच्छे से जानता था । इसलिए वो मुकुंद से ही कलम मांगता था,वो ये भी जानता था कि दो तीन  बार गुस्सा होने के बाद मुकुंद मुझे कलम दे ही देगा ,पर आज ऐसा नही होना था क्योंकि मुकुंद ने जैसे कलम ना देने का कसम खा लिया हो।
       मिशन का मुँह रट लगाए हुए कुत्ते की तरह लग रहा था जिसको बहुत देर से ,कोई छोटा बच्चा पत्थर मार कर बना दिया हो । मिशन अब पूरी उम्मीद और वैसी शक्ल लेकर आशुतोष के तरफ मुड़ता है आशु इसका अच्छा दोस्त होता है , पर आशु मेरी तरफ इशारे में पूछता है दे दें या और मजा चखाये । मैं भी इशारे में ही कहता हूं दे दो ,इतना काफी है इसके लिए । आशु उसे कलम देता है और वो लिख पाता है , घंटी बज जाती है 
यह दूसरी घंटी(पीरियड) थी अशोक पाठक sir की
...............आगे अगली पोस्ट में ☺️
SachinSHVats


#स्कूल से मेरी नफरत----------05
यह दूसरी घंटी(पीरियड) अशोक पाठक sir की थी। ये इंग्लिश पढ़ाते थे। हिंदी मीडियम स्कूल में इंग्लिश के शिक्षक का महत्व चाशनी में डूबे हुए आखरी रसगुल्ले सा होता है जिस पर सबकी निगाहें रहती है। 
                    जब मैं स्कूल में था उस समय तक ये मेरी सोच से पड़े थे।लेकिन आज ये मेरी समझ मे अच्छे से आ रहे है। 
                          अशोक पाठक sir के शब्दों में वो अपना परिचय कुछ यूं बताते थे-"फटले अंगा,घोर दरभंगा,छियो भिखमंगा,"" शायद वो दरभंगिया ब्राह्मण थे ,मछली मुर्गा और दही इनका प्रिय भोजन था।वो कहते थे कि मेरा शक्ल धतूरा के जैसा है और जब मैं जवान था तो मेरे माथे पर भी लहलहाते फसल थे।आज लगता है किसी ने कल्टीवेटर कर दिया हो 
                             दरअसल वो ऐसे ही थे जैसा उन्होंने बताया।रोजाना की तरह आज भी वो क्लास में आये,पर वो आज अपने निर्धारित जगह पर ना बैठकर मेरी बेंच के पास ही अपनी कुर्सी मंगवाया। मेरा आधा कॉम्फिडेंस यही खत्म हो गया । sir सिलेबस को छोड़कर सबकुछ पढ़ाते थे और अगर इनसब से फुर्सत मिल जाता तो सिलेबस भी 10,15 मिनट पढ़ा देते थे। 
                                                      आज भी वो सब से 19 का टेबल और संडे मंडे पूछ रहे थे। मेरी  बारी आयी मेरा कॉम्फिडेंस पहले ही आधा हो गया था उनके प्रश्न करते ही ,पूरा लो हो गया।अब मुझे फरवरी का स्पेलिंग बताना था,लड़खड़ाते हुए मैंने बोल दिया। मेरे मुँह से आवाज ऐसे निकल रहा था जैसे कच्ची सड़क पर बैलगाड़ी की आवाज होती है। sir ने मुझे बैठने को बोला,उनके बैठने बोलने पर मेरे अंदर 100km/H की रफ्तार से खुशी दौड़ लगा रही थी।
    मैं अपने आप को सेफ जॉन में महसूस कर रहा था। फिर 10,15 मिनट सिलेबस पढ़ाया। जिसके बाद मैं पूरा का पूरा रिलैक्स हो गया। मैं इतना रिलेक्स हो गया था कि मैं ये भी भूल गया था कि अशोक sir  क्लास में हूँ ,जो बिना वजह भी बच्चों को डाँटते थे सिर्फ अपने मजे के लिए ।
                                               बाहर दरवाजे पर एक छोटा लड़का आता है।और कहता है sir नंदकिशोर के गार्जियन(अभिभावक) आये है तभी मैं...........
           आगे अगली पोस्ट में ..........
            SachinSHVats


#स्कूल से मेरी नफरत -------06
तभी मैं तालु और मूर्धा के बीच जीभ से हरकत करता हूं ,जिससे टक टक की आवाज निकलती है या फिर कह सकते है हाजमोला के चटकार सी आवाज ,,,उस आवाज से इशारा होता है कि बाहर जाओ।
 sir,ने मुझे ये करते हुए देखा। एकाएक उन्हें गुस्सा आ गया , और कहते है अरे लुच्चा,अरे अरे 
दण्डा लाओ,
              क्लास में ऐसा कोई नही था जो मुझे पिटाई लगने पर खुश होता क्योंकि मेरा सबके साथ बनता था।लेकिन दुबारा उनके जोर देने पर शैशव को आगे आना पड़ा। वो मेरी तरफ अपनी मजबूरी भरी आँखों से दुख  व्यक्त करते हुए आगे बढ़ा।
        इस बीच sir ने मेरा जम कर मजाक उड़ाया, हुल्लु, बुल्लू,मेरे तोते ,मेरे मैंने ,ना जाने क्या क्या बोला, sir ताली बहुत जोर से बजाते थे, उससे मुझे और भी डर लगता था। मैं पूरी तरह घबरा गया और कुछ समझ नही आ रहा था,मैं बहुत ज्यादा डरा और परेशान हो गया था।
     मुझे इस बात का डर नही लग रहा था कि sir मुझे मारने वाले है ,ऐसी ऐसी पिटाई तो मेरे सामने वार्मअप के जैसा था। पर डर इस बात का था कि मेरी गंदी वाली अब बेज्जती करेंगे,sir की एक आदत थी जो औरतों वाली आदत थी।वो तील को ताड़ बना देते थे और घूम घूम कर सारे क्लास में कह देते थे । मुझे यही डर सता रहा था
     थोड़ी देर तक ,जब शैशव दंडा लेकर नही आया तो उनको और गुस्सा आ रहा था, इसी बीच मुझे उस बेज्जती की फिक्र ने अपने गले लगा लिया,और मुझे चक्कर आ गया , आज भी जो मेरे दोस्त है क्लास के उन्हें लगता है कि मैने मार खाने के डर से वो नाटक के रुप में किया था ,पर असल मे मुझे सच मे चक्कर आ गया था। मैंने sir को बोला कि sir मुझे चक्कर आ रहा है मैं बैठ जाता हूं जब छड़ी आएगी तो मुझे मार लेना, लेकिन उनको फिर मजा लेने का मन हो गया ,
     अरे अरे अरे बेहूदा, ऐसा ढंग बाज लड़का मैंने नही देखा , खरे खरे खरे रहो(sir एक शब्द को 2,3 बार बोलते थे )। मैं खड़ा रहा
     शैशव भी थोड़ी देर बाद आया, अपने साथ एक उदंड दण्डा लेकर आया,पर मेरी तरफ निगाहे नही कर रहा था , 
     Sir ने मुश्किल से 2,3 दंडे मारा, मैंने कौन सा बड़ा गुनाह किया था ,मैं भी पूरे शर्म के साथ बैठ गया।

उस दिन मेरे क्लास के दोस्त मुझे कितना पसन्द करते है ये पता चला ,सबने मुझशे मेरी खैरियत पूछी और सब ने यही कहा तू तो जानता है ना sir को, मैं कहता hmmm भाई
    लेकिन जिसका डर था sir ने वही किया सब जगह इस बात का ढिंढोरा पीटा और मजे लिए ।

मुझे लगता था कि ये मेरी बेज्जती हो रही है ,मैं उस दिन को आपने स्कूल दिन के काले दिनों में रखता था, 
    पर उस दिन क्या हुआ था यह सिर्फ मुझे पता है ।जब आप सभी ये पढ़ रहे होंगे तब मैं अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहा हूंगा ,और मैने कोई नाटक नही किया था ।
         आज मेरा दिल हल्का हो गया , मैं खुश हूं अपनी पूरी बात रख कर आपके सामने
🙏 आगे कोई और कहानी अगली पोस्ट में...........
SachinSHVats.....


#स्कूल से मेरी नफरत -----07
सोनल, ये किसी लड़की का नाम नही,मेरे क्लास के लड़के का नाम था,सोनल कुमार 'सौरभ',,, जी बिल्कुल,जितना बड़ा नाम था उतना विशाल शरीर भी था।मुझे याद नही की SBSM में इसने कब दाखिला लिया था, शायद 9, 10 में
               SBSM मेरे स्कूल का नाम था, सुह्रद बाल शिक्षा मंदिर कितना धार्मिक नाम लगता है ना,जब मैं इस स्कूल में पढ़ता था तब यह स्कूल रजिश्टर्ड नही थी , यह श्री सरयू प्रसाद सिंह उच्च विधालय,विनोदपुर ,से जुड़ा हुआ था , विनोदपुर से बहुत सारी कहानी है जो आगे आपको मिलेगा 

      अभी सुने है बच्चे जूते और टाय पहनने लगे है और मीडियम भी बदल रहा है स्कूल भी 8वी तक रजिस्टर्ड हो गया है 
                  जब मैं पढ़ता था या उसके एक साल बाद तक 10वी की बोर्ड परीक्षा में मेरे स्कूल के छात्रों का बेहतरीन प्रदर्शन रहा था कई बार तो मेरे स्कूल ने स्टेट टॉपर भी दिए थे ,और डिस्टिक टॉपर में तो ढ़ेरो स्टूडेंट हुआ करते थे ,जिनमें मैं भी कभी हुआ था ।
           सोनल ,वही लड़का जो मैंने ऊपर बताया है ,सोनल मासूम सा था। 5'4" के आस पास उसकी हाईट थी।गोल और लंबे लंबे कद्दू(लौकी) से हाथ पैर थे, पेट पर लगता था पूरी बाराती के लिए जितना आटा गुदा जाता है सब गुद कर वही रख दिया हो,खाये पिये भुमिहार(बाभन)घर से था , माता पिता ,गुरु अपने से बड़े सभी का बहुत सम्मान करता था ,और दिमाग से सामान्य से बहुत नीचे था
               मैथ्स ,बिल्कुल भी नही आता था ,अंग्रेजी पढ़ता भी नही था ,लेकिन सारे सब्जेक्ट का नोट जरूर बनाता था। सबसे स्पेशल बात इतना मोटा होने के बाबजूद साईकल रॉकेट के जैसा चलाता था , बस और ट्रंकलोरी को भी ओवरटेक कर लेता था । कभी कभी ये मुझे अपनी साईकल पर बैठाकर घर छोड़ देता था ,पूरा रस्ता मैं इसके पीठ पर मुक्का ही मारता रहता था ,इसकी साईकल पर मुझे मेरा आखरी दिन ही लगता था।
                                 आज आपने मुझे देखा होगा कि सोनल के परिचय में मैंने उसके जाति को मेंशन किया ...............आगे अगली पोस्ट में 
SachinSHVats.......

#स्कूल से मेरी नफरत--------- 08
सोनल भुमिहार ब्राह्मण था, बिहार सरकार उस समय स्कीम चलाती थी,पौशाक योजना,साईकल योजना,और तरह तरह के छात्रविर्ती योजना।सबका फॉर्म भरा जा रहा था। नाम ,पता ,पिता का नाम ,और जाति आदि आदि, 
                                      स्कूल में ये पहली बार हुआ था कि हम सब से हमारी जाति पूछी जा रही थी। ऐसे तो मेरा क्लास सिर्फ लड़के और लड़की के बीच मे बटी हुई थी।पहली बार मेरे क्लास में लड़का और लड़की को एक कैटेगिरी में रख कर तीन हिस्से में बाँट दी गयी। 
                                  वो था ,sc/st  ,, obc का अलग ,और जनरल का अलग।उस दिन हम सभी के दिमाग मे एक नया बटवारा हुआ था ,दोस्त भी इधर से उधर हो गए थे। जब क्लास में खड़ा करके सबसे उसकी जाति पूछी जा रही थी। तो अधिकतर सभी बच्चे संकोच के साथ जबाब दे रहे थे ,कितने तो एक बार मे अपनी जाति बताना ही नही चाहते थे ,जब मुझशे पूछा गया तब मैं बस इतना ही बता पाया,की मैं बाभन हूं,इससे ज्यादा मुझे अपने बारे में नही पता था कि ,ये भुमिहार ब्राह्मण क्या होता है ,ये जनरल कैटेगरी का क्या मतलब होता था ,क्योंकि आज से पहले मेरे जीवन मे इसका कोई उपयोग नही था ।
         खड़े हुए अपने दोस्तों का चेहरा मुझे आज भी याद है कि वो अपनी जाति ना बताने की कितनी कोशिश किये थे ,पर पैसा के सामने वो अपनी जाति का नाम बताना ही सही लगा था ,पर अपनी जाति का नाम बताते हुए उनकी झुकी गर्दन मुझे याद है,वो बात तब समझ नही आई थी पर आज आ रही है ।
  जब कई दोस्त ये जान गए कि मैं बाभन हूं ,तो वो मुझसे धीरे धीरे दूरी बनाने लगे,मैं भी खुद को समेटने लगा,अपनी जाति के ही दोस्त बनाने लगा ,और वो भी अपनी अपनी जाति के दोस्त बनाने लगे। सब अलग थलग हो गए ,बैठना उठना बाते करना अब सब बदल गया, मैंने बहुत सारा भुमिहार दोस्त बनाया ,पर उनमे वो बात नही होती थी जो दूसरी जाति के दोस्तो में मुझे मिला(यह मेरा व्यक्तिगत मत है ) तभी मुझे सोनल की जाति का पता चला और उसे भी मैंने दोस्त बना लिया ।
               पर मेरे से ज्यादा दिन ये नही चल पाया, मैं वापस अपने दोस्त के पास लौटने लगा, मैंने पूछा तुम लोग मुझसे दूर क्यू हो गए ,तो वो मुझसे कहता है यही सवाल मैं तुमसे करू तब ?
       मेरे पास कोई जबाब नही था,पर अब उन दोस्तो की आँखो  में मुझे लेकर मैंने एक डर ,और एक इज्जत देखने लगा था वो पुरानी  दोस्ती उनकी आँखों मे मुझे नही दिखती थी। रहीम का दोहा कितना सही है ना?
""रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
   टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥""

तब से कोशिश में हूं कि अपने अंदर से जातिवाद को खत्म कर दूं , ।।
आगे अगली पोस्ट में .............
SachinSHVats.

#स्कूल से मेरी नफरत-------09
उसका आत्मदाह करना, मैं उस दिन स्कूल देर से आया था प्रार्थना हो रही थी,पीछे से आकर आखरी बेंच के पास अपना थैला(बैग)रखकर प्रार्थना करने लगा
  "" 'तू ही राम है,तू रहीम है ,तू ही..........""
   $$$$$$४४४४४४४$$$$$$$
 इसके बाद प्रतिज्ञा, और आज का विचार ,संविधान की प्रस्तावना ,बचपन से करते आये थे इसलिए मुँह जवानी याद था ,
      अनुराग (गिल्लू)  आज का समाचार का वाचन कर रहा था,आज गिल्लू की आवाज में एक दर्द था,वह बहुत दुखी मन से आज का समाचार पढ़ रहा था , वैसे स्कूल में समाचार का वाचन मैं करता था, पर मैं आज देर से आया था हमारे स्कूल में बच्चे अपनी gk की नॉलेज को बढ़ाने के लिए समाचार पढ़ते थे ।शायद उन्ही दिनों से समाचार को अच्छे से पढ़ना ,बोलना और नए ढंग से लिखना मुझे पसन्द आ गया था। यही वजह है मेरा इतना ज्यादा पत्रकारिता के प्रति रुझान का ।
                                          गिल्लू का समाचार पढ़ना खत्म हो गया,झा sir ने सभी बच्चों से रिंकी के आत्मदाह करने का  सूचना दिया,और उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने को बोला,ये सुनते ही सभी बच्चों के होश उड़ गए। लड़कियां रोने लगी ,कुछ लड़के भाव विह्वल हो उठे ,मेरी आंखें भी नम हो गयी।
                            हम लोग एकाएक शांत हो गए ,किसी को कुछ नही पता था,सब एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे। अमूमन प्रार्थना के बाद क्लास का माहौल ही अलग होता है जिसमे sir के आने के कुछ देर बाद तक हल्ला होता ही रहता है ।
           पर आज सब शांत थे,तभी झा sir अंदर आते है ,सभी उदास चेहरे को देख कर वो भी उदास हो जाते है , वो पहले से भी काफी दुखी थे।अफसोस में थे । उन्होंने सभी का अटेंडेंस लिया , तभी बाहर एक 5 वी का लड़का एक नोटिस डायरी लेकर आता है, झा sir उस डायरी को देखते है ,और बहुत ही दुखी शब्दो मे कहते है
"यह विद्यालय दिनांक इतना इतना इतना , अर्थात आज रिंकी के आत्मदाह की सूचना से बहुत दुखी है ,विधालय परिवार रिंकी के परिवार वालो के साथ संवेदना रखती है और आज की कार्यवाही को स्थगित किया जाता है ,इसके बाद उन्होंने नीचे अपना हस्ताक्षर किया और उस बच्चे को वापस कर दिया 
आगे अगली पोस्ट में .......
SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत-------10
उसने आत्मदाह किया था या नही मुझे पता नही पर अगली सुबह बेगूसराय जागरण में उसके आत्मदाह की ही खबर छपी थी।
                            रिंकी ब्रिटेन की रानी से भी ज्यादा गोरी थी।गाल कश्मीरी सेब जैसे लाल थे।आँखे ट्यूब लाइट की तरह चमकती थी,बाल भूरा था,अच्छा कद था, सबसे बड़ी बात बहुत ज्यादा मुँह फट थी, वो इस देश की लगती है नही थी।
                                                      मुझे याद है जब वह अभय मिश्रा(कटोरा) sir से उलझ गयी थी,
अभय मिश्रा sir उर्फ कटोरा sir, उनका बाल लालू यादव(बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री) के जैसा था,सफेद और छतरी के जैसा,आँखे नेवले के जैसा,हाइट मुश्किल से 4 फिट भी नही होगी,दांत बहुत गंदा था,बोलते थे तो थूक के साथ साथ कभी कभी दाँत भी हाथ मे आ जाता था, पैंट छाती पर पहनते थे,मोबाइल नोकिया का था जिसे वो मर्द के सबसे सेफ जगह पर छीपा कर रखते थे। जब फ़ोन आता था जो कि कभी कभी ही आता था तो उनका पूरा मर्दांगी हिल उठता था, हाथ अंदर डाल कर फ़ोन निकालते थे ,फ़ोन की सिक्युरिटी को देख कर हम सभी लोट पोट हुए रहते थे, हाँ उनके पास साईकल भी था जिसको वो पूरे साल में 2 महीना ही चढ़ पाते थे,ज्यादा गर्मी में टायर पंक्चर होने का डर रहता था, बर्षात में ब्रेक ना लगने का डर,और ठंड में तो ठंड ही लगता है साईकल पर इसलिए वो 2 महीना ही साईकल चढ़ते थे ,बाकी दिन 4,5 km चलकर ही आते थे। उनका कटोरा नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वो कुछ सालों पहले किसी क्लास में अपनी कहानी बता रहे थे,जिसमे उन्होंने कहा कि मैं हमेशा कटोरे में खाता थे जो मेरे पेट पर ही रखा रहता था,बस क्या था सब ने उनका नाम कटोरा sir रख दिया , और वो फेमस भी हो गये ,, उन्होंने ने हमे 8,9,10 क्लास में मुश्किल से 10 voice और 10 नरेशन बनाने को दिया ,तीन साल हमारा इसी में बीत गया और पता नही चला ,ऐसे थे हमारे कटोरा अभय sir,
               उस दिन  किसी ने अभय sir की कुर्सी पर पानी से भरा कटोरा रख दिया था , होस्टलर ही कोई था, sir आये और उस पर बैठ गए sir का पूरा पैंट पीछे से भीग गया, sir को गुस्सा आ गया sir ने स्टीक मंगवाया, पूरे क्लास को खड़ा कर दिया,और बोला सच सच बताओ किसने किया नही तो पूरी क्लास को मार लगेगा,हमारे क्लास की खासियत थी हमारे में एकता गजब की थी,किसी ने किसी का भी नाम नही लिया , sir पूरे क्लास को पीट भी नही सकते थे 100 से ज्यादा हम बच्चे भी थे ,उनके मंसूबे पर कोई जैसे एक कटोरा पानी फेक दिया हो।
                            Sir अंत मे भींगे पेंट में ही क्लास के कार्य को आगे बढ़ाया, बात चली , तभी किसी बात पर sir ने बोला अगर घर मे लोटा नही होगा तो क्या लोग नही नहाएंगे , रिंकी बोलती है नहाएंगे, क्यू नही नहाएंगे ,कटोरे से नहाएंगे 
        कटोरा sir का उपनाम था,वो चिढ़ गए ,गुस्से से आग बबूला हो उठे,और रिंकी की अच्छे से पिटाई की ,, पर वो भी अपना मुँह नही बंद की, कहा ना बहुत मुँह फट थी। बोलती गयी बोलती गयी
       हमलोग देख कर हँस रहे थे ,मजे ले रहे थे। थोड़ी देर बाद किशन जाकर कहता है sir छोड़ दीजिये रिक्वेस्ट किया तो उन्हीने छोर दिया 
आगे अगली पोस्ट में ......
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#स्कूल से मेरी नफरत -------11
मेरा स्कूल दो ब्लॉक में बटा हुआ था एक ब्लॉक में नर्सरी से सातवीं तक कि पढ़ाई होती थी ,दूसरे ब्लॉक में 8वी से 10वी तक। छुट्टी के बाद रिंकी दूसरे ब्लॉक के रास्ते ही जाया करती थी,एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक में जाने के लिए तीन फीट की बहुत ही पतली गली से होकर जाना पड़ता था जिसके नीचे से नाला बहता था। गली के एक तरफ pg था, जिसकी खिड़की पर कच्छे सुख रहे होते थे ,और उनका आईना कंघी और फेयर एंड लवली क्रीम रखा होता था। इधर से जो बच्चा जाता वो एक बार उनके सामान को नुकसान जरूर पहुंचाता था।यह sbsm के बच्चों का धर्म बन गया था  
                रिंकी ने भी एक खिड़की को अपने खेलने की जगह बना लिया था,वह रोज दिन उसका आईना तोड़ देती थी। एक दिन अंदर से एक लड़के ने उसे देख लिया, उस लड़के ने आफिस में जाकर उसका कम्प्लेन कर दिया
                 रिंकी ने अपने बचाव में कहा कि मेरा दुपट्टा खिड़की में फस गया था जिसको छुड़ाने में आईना गिर गया था। शायद उस दिन उसने आईना नही गिराया था किसी ने चुगली कर दिया था। वो बहुत सफाई दी पर किसी ने उसका नही सुना।
 झा sir, शशि बाबू,महेंद्र sir ,भूषण sir ,,, सबने उसको डाटा ,वो कहती रही कि sir मैंने नही किया ,पर किसी को विश्वास नही हुआ । विश्वास ना होना लाजमी था क्योंकि वो बदमाशी किया करती थी ,और आज से पहले उसने कई आईना तोड़ा भी था।
    इसके अगले ही दिन यह खबर आई कि उसने आत्मदाह कर लिया ,, सभी sir को बहुत अफसोस आ रहा था ,की हमने उसे डाटा, खास करके झा sir और महेंद्र sir....
    बहुत सारे ,अफवाहें भी आये ,
जिनमे यह भी कह दिया गया कि उसका किसी लड़के के साथ नाजायज समंध था जिससे उसकी माँ को गुस्सा आया ,और खुद से ही उसको जला कर मार दिया।
      इस समाज ने कई बार स्त्री की परीक्षा लिया है
कब तक यह आग स्त्री की परीक्षा लेगा,हर कोई सीता ही नही होती,जिस पर अग्नि देव की कृपा हो।
कितनी स्त्री को सती बनाकर जलाया है,और फिर उसे देवी बनाकर पूजा है ।
              यह एक असुलझा सवाल है कि उसने आत्मदाह किया या उसकी हत्या हुई। अगर उसने आत्मदाह किया तो वो बहुत घटिया लड़की थी अगर उसकी हत्या उसके परिवार के लोग ने किया तो वो निहायत बेशर्म है । कभी माफी नही मिलेगी।

      मेरे भगवान रिंकी की आत्मा को शांति देना🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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#स्कूल से मेरी नफरत ----12
जिस शिक्षक के बारे में लिखने वाला हूं उनकी आत्मा को भगवान शांति दे।🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मेरे स्कूल में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे शिक्षकों में ,सिकन्दर पोदार sir थे, जितना ज्यादा वो पढ़े लिखे थे ,उतना कम पढ़ाना आता था। सवाल सारा बना देते थे ,समझा एक भी  नही पाते थे।
      आँखों पर गाँधी जी का चश्मा,मुश्किल से दो चार ही दांत मुँह में।पतला सा मुछ , शर्टऔर पेंट में दो और सिकंदर sir घुस सकते थे। कमर में जो बैल्ट था उसको मोर कर वापस पहले वाले खुट में डाल लेते थे।चमड़ा का चप्पल और पैर घिस कर चलना उनका आदत था। महिलाप्रेमी मतलब क्लास की लड़कियों से इनका कुछ खासा लगाव था।
      सबसे खास बात sir का साईकल , ऐसा मॉडल आस पास के किसी देश मे भी नही होगा। उनका साईकल बड़ा वाला था ,जिसकी सीट आसमान को छू रहा था तो हैंडल जमीन को,साईकल का हैंडल ऐसा था जिसको पकड़ने के लिए आपको रामदेव बाबा वाला योग का जरूरत पड़ता, साईकल पर बैठे sir अष्टावक्र से कम नही लगते थे ,हर हिस्सा हर जगह से मूड़ा हुआ लगता था।स्कूल के गेट पर वो ब्रेक लगाते और वो साईकल स्टेन में जाकर पैर से रुकता,
   वो बच्चों को नही ,ब्लैक बोर्ड को ही पढ़ाते थे।एक बार ब्लैक बोर्ड में चिपक गए तो तभी छोड़ते जब तक घंटी नही बजती। मैथ्स को उर्दू में पढ़ाते थे ।हमलोग बाए से दाएं लिखते है वो दाए से बाएं लिखते थे ,और खुद ही पढ़कर मिटा भी देते थे।
हमलोग बहुत गुस्से से उन्हें देखते ,पर वो हमें देखते ही नही थे।चाहे पूरा क्लास क्लास छोड़कर बाहर ही क्यू ना चला जाय।
       वो हमें 7वी में ही इथेन मीथेन प्रोपेन पढ़ा रहे थे ,एक कार्बन अगले 4कार्बन से जुड़ेगा ,जो हमलोगों के ऊपर से जा रहा था पूरे क्लास में कोई उनकी बात समझ नही रहा था ,,सिर्फ एक को छोड़कर , वो था किशन फर्स्ट ।
मेरे  क्लास में तीन किशन थे 1st 2nd और 3rd
किशन1st 1st करता था 2nd और 3rd सामान्य छात्र थे।
       किशन 1st , हमारे सभी दोस्तों में सबसे पहले इसी को दाढ़ी आयी थी। इसके सामने हम बच्चा दिखते थे ।
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#स्कूल से मेरी नफरत-------13
किशन 1st , हमारे सभी दोस्तों में सबसे पहले इसी को दाढ़ी आयी थी। इसके सामने हम बच्चा दिखते थे ।
  हम सभी के स्कूल के जीवन मे एक दोस्त ऐसा जरूर दिखने को मिलता है,जो गर्मी छुट्टी में गाँव जाता है ,और जब वापस आता है तो ताड़ इतना लंबा हो जाता है,आवाज फट जाती है ,वैसे ही इसके साथ भी हुआ , जब यह भी गर्मी छुट्टी से वापास लौटा तो इसके भी अच्छी खासी  दाढ़ी आ चुकी थी। हमलोग तो शुरू शुरू में पहचान ही नही पाए कि ये मेरे ही क्लास का लड़का है। इसकी हाइट बरसात में भीगे हुए पटाखे की तरह थी सुर सूरा कर जली तो थी पर फ़टी नही,मतलब इसकी हाइट थोड़ी बढ़ी और एकाएक रुक गयी थी।
         यह मेरे क्लास का सबसे तीक्ष्ण बुद्धि का लड़का था,पढ़ाई में अव्वल,मेधावी और बहुत सारी प्रतिभाएं थी। इसने बहुत सारा स्कॉलरशिप जीत रखा था,एक क्लास ऊपर का मैथ्स बनाता था। इंजीनियरिंग इसे बहुत पसंद थी।
       एक दिन किसी बाहरी शिक्षक ने इससे इसका परिचय पूछा तो ये अपना नाम पता क्लास बताने के बाद इसने अपना करियर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बताया, इंजीनियरिंग के ऐसे डिपार्टमेंट के नाम लिया जो एग्जिस्टि ही नही करता,sir ने कहा ऐसा तो कोई इंजीनियरिंग का सेक्टर नही है ,हमलोगों ने जम कर हँसा इस बात पर, उसे बुरा लग गया। उसने अपने बैग में कुछ ढूंढा और निकाला क्लास खत्म होने के बाद sir को दिखाया ,दरअसल वो जो इंजीनियरिंग के सेक्टर के बारे में बताया था वो दरअसल सच मे था ,शिक्षक को ही नही पता था,वो क्लास में फदरते हुए बोला नही पता तो हँसा मत करो, इस बात पर भी हम सभी हँस परे
     उसकी प्रतिभा को देखकर हमलोग दंग रहते थे।आज भी मुझे याद है कैसे कोई सवाल सबसे पहले बनाकर वो अपना हाथ खड़ा कर देता था। वो परीक्षा में सारे मित्र को भूल जाता था।किशन अपना दोस्त चुन कर बनाता था। उसे किसी भी चीज के सेंटर में रहने की आदत थी। सभी उसे देखे ,वो जो बोले वही हो ,ये सब उसकी आदत थी। पढ़ाई में बहुत अच्छा था ,जिसका उसे बहुत ज्यादा घमंड था,उम्र भी बढ़ता गया ,घमंड और उसके ज्ञान का स्तर सभी बढ़ते गये। वो किसी शिक्षक से असहमत होने पर फटाक से खड़ा हो जाता और उनका विरोध करता ,कई बार तो वो सही रहता ,कई बार बेवजह छोटी छोटी बातों पर भी उलझ जाता ।जिसे नजर अंदाज किया जा सकता था।
      एक दिन वो कुमोद sir जो उसी के पिता थे उन्ही से उलझ गया........
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#स्कूल से मेरी नफरत------14
#शिक्षकदिवस स्पेशल☺️
मैं गुरु शिष्य स्नेह में बहुत ही भाग्यशाली लड़का हूं, मेरे जीवन मे मेरे गुरुओ ने महवपूर्ण भूमिका निभाई है। 
   मेरे स्कूल में छात्रों के द्वारा एक आयोजन किया जाता था,जिसमे बच्चे आपस मे पैसा इकट्ठा करके शिक्षक को सरप्राइज पार्टी देते थे। मेरे स्कूल में समाज के हर स्तर के बच्चे पढ़ते थे , सबसे ज्यादा सामान्य और सामान्य से थोड़े नीचे वाले लड़के पढ़ते थे। मैं सामान्य से थोड़ा नीचे परिवार वाला लड़का था,जिसका स्कूल फ़ी हर बार लेट और कुछ ना कुछ बच ही जाता था।
                               सभी बच्चे कुछ न कुछ शिक्षक को उपहार के तौर पर देना चाहते थे। उनको देने का उद्देश्य यह नही था कि हमे उनसे बहुत ज्यादा लगाव था,बस ये की उनकी नजर में हम बने रहे।और क्लास में भी इज्जत बनी रहे कि हमने भी दिया है sir को ,
     मुझे किसी भी शिक्षक को कभी भी कोई उपहार देने की कोई इक्षा नही होती थी।इक्षा खाख होती ?
उन्होंने मुझे कितना पीटा और बेज्जती की हुई होती थी। इन सभी बातों से ऊपर था मेरे पिता की जेब में पैसे कम होना, मैं अपने घर वालो से शिक्षक दिवस पर पैसा मांगता तो वो कहते नही है,शिक्षक को कोई उपहार देता है शिक्षक तो तुम्हारे लिए उपहार है ,उसके बाद माँ का ढ़ेरो गाली और पिता जी का फ़लाना चिलाना वाला डायलॉग ,   मैं कितनी दफा रोया है शिक्षक दिवस पर की मुझे पैसे दो मुझे शिक्षक को उपहार देने है । पर कभी नही मिला,घर वाले बोलते कौन से शिक्षक तुम्हे उपहार मांगे है मैं कहता कोई नही।तो फिर दोगे क्यू?
   मैं कैसे घर वालो को समझाता की जब सभी बच्चें दे रहे होंगे तो मैं ठिसुआय(गलानी महसूस)मुँह लेकर बैठा रहुँगा । मैं अपने माँ बाप का इकलौता बेटा हूं पर व्यवहार शौतेले बेटे जैसा ही होता है।
       कितनी दफा मैंने पापा की जेब से पैसे चोरी किये थे शिक्षक दिवस पर शिक्षक को उपहार देने के लिए ।पर जो खुशी और बच्चों को उपहार देते हुए आयी वो मुझे कभी नही आई ,मेरे लिए यह मजबूरी भरा दिन होता था।
    धीरे धीरे जब क्लास बढ़े और मैं भी बड़ा हुआ तो मैं एक दो महीने पहले से ही पैसे बचाने शुरू कर दिया करता था।ताकि शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को उपहार दे सकू।
    कुछ दिनों बाद मेरे स्कूल में किसी झोल झाल की वजह से शिक्षक दिवस मनाना बन्द हो गया, पर शिक्षक अपने साथ झोला छिपा कर लाते थे। बच्चे चोरी छिपे उनके झोले में उपहार रख देते थे। इसमें सबसे ज्यादा उपहार पाठक sir को होता था ,एक ,2 झोला तो भर ही जाता था बाकी शिक्षकों को 1,2 पॉलीथिन होता था।
      शिक्षक दिवस में सबसे ज्यादा मजा हमने सिकंदर sir के साथ लिया ,उस दिन विभव sir को भोजपुरी गाने का मतलब समझाता था।और sir भी धीरे धीरे रम जाते।क्वाटर अद्धा , अंग्रेजी देशी विदेशी सब पर बात करता। लड़की कौन खूबसूरत है कौन नही है ,sir भी in detail पूछते बताते ।
      आखरी बार मैंने और मेरे टीम ने मिलकर 10वी में शिक्षक दिवस मनाया ,झा sir ने केक काटा ,जिस केक को जल्दी जल्दी निकालने के चक्कर मे उपर वाला सब मिटा गया,,उस दिन जम कर सबने खाया पिया, और कल होकर डायरेक्टर sir सुरेश sir की बहुत सारी डाँटे भी सुनी थी।।
और हर साल की भांति इस साल भी ,sir ने अपना भाषण यही से शुरू किया कि शिक्षक की नजर में सभी बच्चे एक समान होते है ...........फ़लाना चिकाना ,ढकाना$$$$$$$$$४

शिक्षक कितना भी कह ले कि मेरे लिए सभी छात्र एक समान है यह सत्य नही हो सकता ,क्योंकि परम् शिष्य शब्द आप ने जरूर सुना होगा,
जी बिल्कुल अर्जुन के लिए, स्वामी जी के लिए,प्रहलाद के लिए, ......और बहुत सारे लोग हम में से भी आज के उदाहरण है ,जो शिक्षक को अत्यंत प्रिय है ,,,,,
........आगे अगली पोस्ट में........
SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत------15
किशन एक दिन अपने पिता कुमोद sir से भी उलझ गया।,कुमोद sir नर्सरी से पाचवी तक पढ़ाते थे। और  सारा सब्जेक्ट पढ़ाते थे। कुमोद sir, नाटे कद के थे,जब मैं बच्चा था तब उनके बाल काले थे ,फिलहाल सफेद है।अनुशासन के पक्के,और गलती करने पर माफी ना देने वाले शिक्षक में से थे।
शर्ट पेंट पुराने जमाने के पहनते थे। इनकी साईकल बड़ी थी और हाइट छोटी थी उतरते वक्त इन्हें कूदना पड़ता था।
          स्कूल में सबसे ज्यादा मार मैंने इन्ही के हाथों से खाया था। मैं बहुत डरता था  ,आज भी डरता हूं। ये बच्चों को बहुत ही निर्दयी तरीके से पीटते थे। A से Z तक सभी लेटर से दो दो शब्द लिखना और याद करने को कहते जो कि मैं कभी ना करता ,घर जाते ही भूल जाता क्या करना है ,अगली सुबह कपड़ा पहनते ही रोना शुरू कर देता ,अंदर ही अंदर मुझे उनका डर लगा रहता , घर से स्कूल जाते वक्त भगवान से बस यही कहता ,भगवान बस आज बचा ले कल से याद कर लूंगा ,जितने मन्दिर मस्जिद मिलते सबको प्रणाम करता , किसी ने बताया कि घास उखाड़ कर जेब मे रखने से मार खाने से लोग बच जाते है ,मैंने वो भी किया ,बजरंगबली के आगे हाथ जोड़े ,पर कभी नही बचा ,रोज मेरी कुटाई होती ,और इसके बाबजूद मैं फिर भूल जाता पढ़ाई करना 
      कुमोद sir शक्त शिक्षक थे ,उम्र बढ़ता गया ,इनसे धीरे धीरे डर कम हो गया परन्तु खत्म नही हुआ , किशन इन्ही का बेटा था। सिकन्दर sir किशन के बिना मतलब उलझने पर उन्होंने कहा sir को sry बोलो पर वो नही बोला , अपने पिता के जैसा ही वो भी बहुत टेढ़ा  था। sir ने उसे पीटा ,बहुत पीटा परन्तु वो नही बोला ,अंत मे सिकंदर sir ने ही कहा जाने दीजिये क्या कीजियेगा । बच्चा है।।  किशन के चेहरे पर कोई अफसोस का भाव नही आया ,वो तना रहा ,अंत मे कुमोद sir को अपने बेटे के सामने ही झुकते देखा, मुझे बहुत दुख हुआ ,जो शिक्षक अनुशासन का इतना प्रिय था ,आज उसे अपने पुत्र के सामने नतमस्तक होना पर रहा है ,पुत्र की वजह से जलील होना पर रहा है । पर वो भी तो पुत्र मोह में थे।
 आगे अगली पोस्ट में.......
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#स्कूल से मेरी नफरत ------16
भाई ,एक बात जाना?
क्या,क्लास में नई लड़की आयी है ।
ये सुनकर हम सभी के चेहरे पर चन्द्रयान2 की रफ्तार से खुशी दौड़ी। 
सच! ,सच मे भाई, हाँ, गुरु बिल्कुल,और तो और सुने है ,मुसलमान है ? मुसलमान शब्द सुनते ही मुँह से लार टपकने लगा ,जैसे गोलगप्पे को देखकर लड़की के मुँह से टपकता है।
गुरु,मुसलमान है!(थोड़ा उदास होते हुए), ये तो और अच्छी बात है ना?
कैसे अच्छी बात है,वो मुसलमान और मैं भुमिहार (ब्राह्मण) ।
     अरे बेबकूफ,जितना पुण्य भगवान की पूजा में नही है उससे ज्यादा पुण्य एक मुसलमान लड़की से प्यार करके उसे धोखा देने में है । सौ गाय दान करने के बराबर पुण्य मिलेगा ,गुरु।(कितनी गंदी और भद्दी मानसिकता थी ,उस वक्त)
                              तू कहता है ,तो देखते है ,क्या होगा
 भाई एक दिक्कत है ,
अब क्या हुआ? ,उसका भाई भी है कोई क्या? किसी लड़की का भाई भी उसी क्लास में पढ़े तो फिर उसे पटाना अच्छा नही लगता । तू तो जानता है ना? मैं अपने दोस्तों की माँ और बहन की इज्ज़त बिल्कुल अपने माँ ,बहन की तरह करता हू। यार कैंसिल कर दे।
       अरे नही गुरु भाई नही है ,बॉय फ्रेंड है,और वो हिन्दू है।
क्या ??अपने साथ फ्रेंड लेकर आई है। उफ़्फ़फ़ 
चल कोई ना ,दुगनी मेहनत लगेगी ,पहले ब्रेकअप फिर पटाना पड़ेगा।( लड़को का दिल कितना बड़ा होता है देख रहे हो)
   
    जुलेखा खातून,(मुस**) जितना प्यारा नाम था ,उतनी ही प्यारी शक्ल थी। दुबली पतली,लचीला शरीर , गोरा रंग जो दूध को भी मात दे। बड़ी बड़ी आँखे, बिल्कुल हिरन जैसी,पेंसिल से बनाये हुए उसके होठ, बाल पीछे पीठ तक थी मानो लगता था किसी ने चाँद को लताओं से घेर रखा हो।आधे बाजू का शर्ट,जिसमे उसकी लम्बी सी हाथ दिखती थी।उसके स्कर्ट नारियल के पत्तो सा फैला था। पाँव में सफेद रंग की हवाई चप्पल(रेलेक्सओ)  थी लगता था जैसे जमीन आसमान हो गया हो और वो तारो पर चल रही हो। उसके पैर हल्के और नज़ाकत से उठते थे।हर कदम मंद मंद हवा के बहने की अनुभूति करवाती थी। सिर उठाकर चलती थी पर निगाहे झुकी होती थी। उसका पैर लम्बा ,पतला ,गोरा, था लगता जैसे जन्नत का रास्ता हो। स्त्री का पैर ही उसकी असली खूबसूरती होती है । शायद उसे पता था।
     जब पहली बार उसका बाया पैर हल्के से उठकर मेरे क्लास में आया..........
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#स्कूल से मेरी नफरत ---------17
जब पहली बार उसका बाया पैर हल्के से उठकर  क्लास में आया।उसके कदम पड़ते ही पंखा चलेने लगा, भीड़ में से आवाज आती है ,जय विश्वकर्मा $
ये तो बिजली है। सभी जोर से ठहाके मार कर हँसने लगे। और वो चुप चाप 3rd बेंच पर जाकर बैठ गयी। उसे सभी ऐसे देख रहे थे ,जैसे मेट्रो में पुलिस स्कैन करती है, सात घंटी में वो पूरी तरह स्कैन हो गयी थी।
        क्लास के सभी लड़के एक एक करके चांस ले रहे थे। और वो किसी को भाव नही दे रही थी। अधिकतर जब सबने आजमा लिया ,तब कहते है ,यार ये लड़की अच्छी नही है , एकदम 3rd क़्वालिटी है। पता नही कितनो के साथ इसका होगा। ये तो वही बात हुई ना अंगूर तक नही पहुचे तो अंगूर खट्टा है। ये मैंने बोला, कल तक तुम लोग उसी के पीछे थे और आज वो ना मिली तो 3rd क्लास हो गयी।
       तुम बहुत ज्ञान दे रहे हो,जैसे तुमसे पट जाएगी,हाँ क्यु नही पटेगी, तो गुरु पटा के दिखा, ठीक है , पटा लूंगा,चल हट।।।
     बहुत दिनों तक मैंने उससे बाते नही की ,देखा तक नही ,बस अपनी ही धुन में था ,बदमाशी करना,झगड़ा करना ,मार पीट ,और शिक्षक की डांट  और मार खाना, 
      क्लास में लड़के हीरो बनने के लिए जोक्स मारते रहते थे ,मैं भी करता था, वो मेरे जोक्स पर हँसती थी। एक दिन ऐसा हुआ कि मेरी कॉपी की पेज खत्म हो गयी ,मैंने इधर उधर देखा, वो मेरे से एक हाथ की दूरी पर बैठी थी। उसने फटाक से कॉपी का पेज निकाला और मुझे दे दिया । मैं उसे देखता रह गया। जो लड़की पिछले एक साल से किसी को भाव तक नही दे रही ,किसी को देख तक नही रही ,वो लड़की मुझे अपनी कॉपी का पेज निकाल कर दे दी। ये मेरे लिए आश्चर्यजनक बात थी। उस पेज पर मैं कुछ लिख तो नही पाया ,पर उसे संभाल कर रख लिया ।
             ये सब होते हुए ।किसी ने नही देखा सिवाय ज़ुराग के । sry जुराग उसका असली नाम नही था ,ये तो हमने बनाया था ,जुलेखा से उसकी बात मनवाने के लिए , उसका असली नाम था अनुराग,  ,,,  ,,, जुलेखा+अनुराग=#जुराग
   ये नाम स्कूल के दिनों में बहुत फेमस हुआ। उसने पेज वाली बात पूरे क्लास में इतनी जल्दी  फैला दी , जैसे जंगल मे आग फैलती हो। 
     दोस्तो में मेरा नाम हो रहा था।,पर जुराग मतलब अनुराग के मन मे कुछ और ही चल रहा था। ......
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#स्कूल से मेरी नफरत----------18
जुराग के मन मे कुछ और ही चल रहा था।यह बात तब स्पष्ट हुई,जब मैंने जुराग को जुलेखा का इंतजार करते हुए देखा ,दरअसल जुराग का घर स्कूल के रास्ते मे था , वो घर से देखता रहता ,जुलेखा को आते देख झट से अपना बैग लेता और उसके पीछे चल देता ,छुट्टी के वक्त भी वो उसके पीछे जाता ,पर जुराग बहुत फट्टू था ,अपने स्कूल के दिनों में उससे कोई बात नही कर पाया ,hye तक नही बोल पाया । क्लास में भी वो जुलेखा को देखता रहता था।
                इन सभी गतिविधियों को #आदर्श बहुत गौर से देख रहा था। वो सबकुछ मेरे सामने आकर बोल दिया , की जुराग जुलेखा को लाइन दे रहा है पर कुछ बोल नही पाता, मैंने भी नोटिस किया तो यही पाया।
       अभी वो समय था जब मैं जुलेखा से अच्छी खासी दोस्ती कर लिया था , अब एक दो दिन में मौका पाकर मैं बाते आगे बढ़ाता, जुराग मुझे जानता था,की मैं इन कामो में देर नही करने वाला,
            जुराग आता है ,मेरे पास बैठता है ,और मुझे इमोशनल ब्लैकमेल करता है ,इमोशनल ब्लैकमेल करने से पहले वो मेरी तारीफों के पूल बन्धाता है ।भाई ,तू अच्छा दिखता है,तुम क्लास की सभी लड़की से बात करते हो,फ़लाना चिलाना, जो होता है ,अपना बोला,जिससे मैं फूल कर गुब्बारा हो  गया। और उसे मैंने जुबान दिया कि आज के बाद मैं उसे ना तो देखूंगा और ना ही बात करूंगा ,दोस्ती तो दूर की बात है ....., जुराग खुश हो गया। 
    जुराग उसके आगे पीछे करने लगा ,मैं उससे प्रौग्रेस रिपोर्ट पूछता ,वो कहता बात हो रही है भाई ,हो रही है।
मैंने उसके साथ गुप्तचर लगा रखे थे जो उसकी पल पल की खबर को मुझ तक पहुचाता था।  और मुझे पूरा विश्वास था कि जुराग कभी उसे अपनी बात नही कह सकता ,क्योंकि वो था बहुत बड़ा वाला फट्टू , वही हुआ ,हम सब स्कूल पास हो गए,मैंने उसे कुछ नही बोला , क्योंकि मैं वचन बद्ध था।और वो फट्टू था इसलिए कुछ नही बोला ,हमदोनो के हाथ कुछ नही लगा, पर मेरी वचनबद्धता को देख जुराग और मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी।
      और हाँ, आज मैं अपने उस गुप्तचर का नाम बता देता हूं, वो #अनिकेत और #आदर्श था...
आगे अगली पोस्ट में.....आदर्श की कहानी के साथ........
SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत ------19
#आदर्श, राम का लक्ष्मण के साथ जो रिश्ता था,जय का वीरू के साथ,मुन्ना भाई का सर्किट के साथ वही रिश्ता मेरा आदर्श के साथ था।
        आदर्श सिर्फ नाम ही आदर्शपूर्ण था कर्म ये ठीक इसके विपरीत करता था।कुछ लड़के होते है ना,जो गलती करे या ना करे ,शिक्षक उसी को पीटते  थे उनमें से था मेरा जान आदर्श ,
       इसकी शक्ल देख कर कोई भी कह सकता था कि ये कितना बड़ा बदमाश है (स्कूल के दिनों में) किसी को पीटे या ना पीटे इसको जरूर पिटाई लगती थी। और शायद यही वजह थी मेरे सर्किट की ये मेरा दोस्त बना, हम सभी अपने स्वभाव के जैसा दोस्त बनाते है ,और बनते है ,इसका और मेरा भाव मेल खाता था।
      ये डरता नही था,डेरिंग करने वाला लड़का था।स्कूल के दिनों में इसने किसी लड़की को नही देखा, और ना ही किसी को पसन्द किया । कोबरा लिस्ट ,ब्लैक लिस्ट ,जितने भी स्कूल के बदमाशो के लिस्ट थे ।उसमे इसका नाम जरूर होता था।कभी कभी तो उपर भी होता था।
    इसका चेहरा,उस समय मारपीट करने वाला ,लूटपाट मचाने वाला फिल्मी एक्टर के जैसा लगता था। चेहरे पर कट के निशान थे।बाल लंबे ,बिना कटिंग के ,असभ्य की तरह थे।शर्ट के उपर का 3 बटन खोले हुए रहता था। ये बता इसने मुझशे सीखा था। मेरे मुँह से जो भी कुछ भी निकलता उसे यह पूरा करता था,चाहें वो सही हो या गलत, भाई ने बोला तो बस करना है ,ऐसा सीन था ...भाई से भी ज्यादा प्यार करता था।
मेरे खिलाफ कोई कुछ बोले उससे लर जाता था। और कहता था, निकल बाहर स्कूल से .......
ये इसका फेवरेट डायलॉग था,निकल बाहर स्कूल से....
आगे अगली पोस्ट में.......(समय कम था इसलिए कुछ खास नही लिख पाया)
SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत ----20
निकल बाहर स्कूल से........ये इसका फेमस और प्रभावशाली डायलॉग था। हद तो तब हो गयी ,जब एक दिन किसी शिक्षक ने मुझे पीटा और ये उनसे उलझ गया । शिक्षक को ढेर सारी  गाली मन ही मन दिया होगा। और मुझसे आकर कहता है ,भाई आज इसको पीट देंगे, निकलने दो ******(ये गाली थी)।
   ये गुस्से से जलबला रहा था। और बहुत सारी प्लानिंग भी कर रहा था कि कहाँ रोकेंगे ,और क्या क्या करेंगे?
   क्लास के कुछ और लड़के भी इसके साथ हो लिए ,उन्हें भी अपना खुन्नस निकालना था और वो जानते थे ,की ये आदर्श है ये कुछ भी कर सकता है ,कुछ भी , वो लोग आदर्श को धार देने लगे ,अच्छे से धार देकर धारदार बना दिया ,अब इसे जिस पर गिरना है गिरा दो , सामने वाले को काट देगा या खुद कट जाएगा।
   आदर्श मुझ पर बहुत भरोसा करता था।कोई काम करने से पहले जरूर पूछता था। गुस्से में मेरे से कहता है भाई तुम मेरा साथ देगा ना,आज उनको रोकना है स्कूल के बाहर 
   मेरे सामने धर्म संकट था,एक तरफ मेरे गुरु थे ,चाहे लाख बुराई हो उनमे ,फिर भी हमने उनसे बहुत कुछ सीखा था। और दूसरी तरफ मेरा दोस्त था।जिगड़ी यार ,जो मेरे मुंह से निकलने वाले शब्द को फरमान समझता था। और उसे जब मेरी जरूरत पड़ी तो मैं पैर पीछे कर लेता।
  मेरी माँ कहती थी,चाहें बेटा जो भी हो,जैसा भी हो,गुरु जो है वो ,,,,,,,माता पिता,दोस्त महीम सबसे बड़ा होता है। चाहे वो अच्छा हो या बुरा, तुमने उससे कुछ भी सीखा है तो तुम्हे उनका सम्मान करना होगा।
   आदर्श गुस्से में था,वो कहता है जाओ तुम भी साथ मत दो मेरा, मैंने उसे कुछ नही बोला, वो चला गया, 
   जो जो लड़के उसे धार दे रहे थे ,अब वो मेरे बारे में उसके कान भर रहे थे।कि तूने उसके लिए इतना किया और जब तुझे जरूरत हुई तो उसने हाथ खड़ा कर दिया। कैसा दोस्त है तेरा?
    थोड़ी देर बाद आदर्श आता है ,अब उसका गुस्सा  कुछ कम हो गया था।मैं पूछता हूं तुम ठीक हो ,गुस्सा कम हो गया? वो कहता है-नही
  पर मैंने भापा तो लगा कि कुछ गुस्सा कम हुआ है ,तब मैंने उसे समझाना शुरू किया ,जिस जिस ने जो उसे धार दिया था ,उन सभी बातों को गलत और खंडित किया , थोड़ी देर बाद वो सामान्य हो जाता है । और कहता है यार पर मैं उन्हें ऐसे नही छोड़ सकता?
  तुम ये बताओ ,तुम ये कर सकते हो,ये मैं भी जानता हूं और तुम भी जानते हो।
जब ये तुम्हारी क्षमता है ,तो फिर तुम्हे क्षमा कर देना चाहिए, क्योंकि यही सही होगा। और बहुत सारी  बातों को समझाने के बाद वो समझ गया। और उसका गुस्सा ठंडा हो गया।
   मैंने अपने इस छोटे से जीवन मे देखा है जिस किसी छात्र ने शिक्षक की मर्यादा को ठेस पहुचाने की कोशिस की है ,उसे किसी ना किसी रूप में दंड मिला है ,कितने आज भी सड़क पर भटक रहे है।
   मैंने अपने दोस्त को गलत करने से रोक लिया था। उसमें क्षमता था।फिर भी उसे मैंने रोक लिया ।
इस जगह पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की पंकित महत्वपूर्ण लगती है मुझे----

""#क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो।"""

आगे अगली पोस्ट में......
SachinSHVats


#स्कूल से मेरी नफरत-----21
#हौ #चापला,, इसकी सिर्फ इतनी गलती थी कि यह अपनी टूटी चप्पल को सिलवाने के लिए मोची के यहाँ गया और उसे कहता है हौउ,हौउ हमार चापला सील दबौ, यह अपने बाढ़ की भाषा मे बोलता था, जिसका मतलब यह था कि सुनिए मेरी चप्पल टूट गयी है सिलाई कर दीजिए। पर उसे हिंदी बोलना आता नही था। तो मोची उसकी बात समझ नही पाया ,गौरव के साथ गुलशन या शैशव गया था ।जो मोची को बाद में समझाता है उसके बाद मोची और वो सब हँसने लगे थे।और उसी क्षण से उसका नाम गौरव से हौ चापला हो गया।
             गौरव बाढ़, स्कूल में नाम के साथ उसके गाँव या जिला का नाम भी जोर दिया जाता था। गौरव बाढ़(जगह का नाम) से था।और वही का भाषा बोलता था। 
       चापला ऊँचे कद का लड़का था। रंग तावा से भी ज्यादा काला था।हाथ पैर लम्बा था और शरीर से मजबूत था।गाँव मे खेती मजदूरी किया था तो शरीर सुडौल था। ये सभी से पंजा जरूर लड़ाता था। बल की आजमाइश करता रहता था। दिमाग कम था , पर लड़का दिल से अच्छा था ,छल प्रपंच समझ मे नही आता था ना ही करता ,बाकी लोग इसका फायदा भी उठाते थे।और ये किसी का नही ....
  इसके उपनाम को फैलाने में पाठक sir का बहुत बड़ा योगदान था।क्योंकि शैशव गुलशन ये सभी पाठक sir से पढ़ते थे ।तो वो लोग पूरा दिन की कहानी पूरे एक्शन के साथ sir को सुनाता था ।फिर sir इन बातों का अच्छे से मजा लेते।क्लास में उसे सभी चापला कहने लगा ,उसे बुरा लगा ,2,3 के साथ झगड़ा भी कर लिया ,और पाठक sir का कॉम्प्लेन भी कर दिया। अब sir इसे देखना नही चाहते थे ,बहुत बेज्जती करते थे।ये पढ़ने में भी गोबर था । धीरे धीरे हम सभी के साथ रहते रहते बोलना पढ़ना सीखा था। पर इसका मजाक बनाया जाता था।बहुत दुखी रहने लगा था।
  मेरे से ये सब नही देखा गया ,मैंने इससे दोस्ती की ,मेरा एक स्वभाव था और है भी मैं ज्यादा तेज लोग से बात नही करता।सामान्य  या कमजोर से ज्यादा बात करता हूं मुझे एक विश्वास था कि मैं कमजोरों को मजबूत करके एक मजबूत फौज बना सकता हूँ। 
   देखते ही देखते , गौरव मजबूत हो रहा था।बोलना सीखा ,हाँ...मैंने उसे गाली भी देना सिखाया ।और वो सीख भी गया। .....
आगे अगली पोस्ट में.....
SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत ------22
ठंडी ये किसी मौसम का नाम नही ,मेरे क्लास के लड़के का नाम था।कागजी नाम तो प्रिंस था,पर हम सभी इसको ठंडी ही कहते थे। कुछ इसे व्यास देव भी कहते थे ,ये इसके पिता का नाम था पर स्कूल के दिनों में बाप के नाम से ही हम बेटे को भी बुलाते थे।
   यह पपीते के पेड़ के जैसा लम्बा था,बाल अमरीशपुरी की तरह आँखो पर रहते थे,आँखे नेवले की तरह छोटी पर तेज थी।शर्ट का बटन पूरा लगाता था,वो भी पेंट को अंडर पैक करके पहनता था। दुबला पतला होने की वजह से ,लगता था जैसे किसी ने बाँस में कपड़ा पहना दिया हो। इसका पैर साईकल की सीट पर बैठने के बाद भी जमीन तक पहुच जाता था ।
    इसके परिवार के लोग भी शायद मेरे घर वालो की तरह थे ,ये भी कभी स्कूल नही छोड़ता था रोज स्कूल आता था। शायद इसे आना पसन्द भी था।
      एक दिन बहुत ठंड पर रही थी,स्कूल का कोई बच्चा नही आया था। उस दिन तो मैं भी नही आया था। फिर भी ये , इसकी बहन और भाई आये थे। राजेन्द्र sir इससे पूछते है तुम्हे ठंड नही लगती या घर मे काम करना पड़ेगा इसलिये  चले आते हो ।ये कहता है मुझे ठंड नही लगती मैं खुद ठंडा हूँ।
क्लास में इसके अलावा एक दो बच्चे और थे।जिन्होंने ये बोलते सुना ,बहुत हँसे की तुम खुद ठण्डा हो। और उस दिन के बाद इसका नाम प्रिंस ठंडी हो गया।
   इसकी बहन कृति भी हमारे क्लास में पढ़ती थी।मोटी सोटी थी।ठीक इसके विपरीत थी।जहाँ ठंडी को देखकर लगता था कि इसके घर मे 4 रोटी ही बनती होगी।वही इसकी बहन को देख कर लगता था कि वो 4 रोटी यही खाती होगी। गालों पर मांस थे। आँखे इसकी भी छोटी और अंदर थी। सामान्य सी दिखती थी।
   इन दोनों भाई बहन का सम्मलित रूप से sir मजाक बनाते थे।एक दिन पाठक sir ने इससे पूछा कि तुम इतनी मोटी हो और तुम्हारा भाई पतला है वो क्यू?
     वो कहती है,sir वो नही खाता है ,
Sir कहते है,आज क्या खायी थी।वो कहती है sir आम खाये थे। sir ने कहा कुछ आम इसको भी काट कर दो ,,खायेगा, मोटा होगा।तुम्हारा ही भाई है।
     पाठक sir ने इतना बोला और चले गये। पर होस्टल के बच्चों का ये आदत था ,वो किसी का भी नाम बदल देते थे। उस दिन से सभी होस्टल के लड़कों ने उस कृति का नाम बदल कर आम रख दिया ।। जैसे:-- अच्छा ,ये किसने बोला तो आम ने इस तरह 
  धीरे धीरे, हम सभी ने उसे आम कहना शुरू कर दिया था।ठंडी(प्रिंस) को बहुत बुरा लगता था उसने दो तीन बार शिक्षक से भी कहा पर एक बार स्कूल में जिसका नामकरण हो जाये वो कभी नही बदलता ,वो गुस्से में ही रहता था।होना लाजमी था
    हमारे सामने ही कोई हमारी बहन के बारे में कुछ उल्टा पुल्टा बोले तो कितना बुरा लगता है ,वो तो भी उसकी अपनी बहन थी।उसे कितना बुरा लगता होगा। आज बुरा लगता है कि हमने उसके साथ कितना बुरा किया , कितना शर्मिंदा किया उसे और आज हम शर्मिंदा है । वो दोनों भाई बहन बहुत अच्छे है ।      पर वो स्कूल के दिन थे।इतना दुसरो की भावनाओ का ख्याल ना था।  sry प्रिंस और कृति ,, 
आगे अगली पोस्ट में........
SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत---------23
#हिंदी दिवस स्पेशल
आधे बाजू का नरेंद्र मोदी जी जैसा कुर्ता और धोती पहने झा sir किसी पुराने हीरो से कम नही दिखते थे। पचपन ,साठ की उम्र में अठारह साल के लड़के जैसे बाल थे। बाल कहीं कहीं सफेद हो गए थे। कपड़े साफ ,बाल सही से सजा हुआ ,बड़ी बड़ी आँखे, रंग गोरा ,चेहरा साफ था।उसपर उनकी गर्व से तनी हुई मुछें, सीना छप्पन इंच का लगता था।तीव्र गति से चलना ,और चलते वक्त उनके हाथ का आगे पीछे होना अनुशासन के प्रिय होने का परिचायक था।
       झा sir मतलब श्री कौशल किशोर झा जी,इनका शुभ नाम था। ये मेरे स्कूल के प्रधानाचार्य भी थे, हिंदी के शिक्षक ,साथ ही 10वी के वर्ग शिक्षक । इनका व्याकरण ज्ञान मजबूत पहलू था। इनकी सुंदर और स्पष्ट लिखावट के हम सभी दीवाने थे। शब्दो के उच्चारण के कायल थे।एक अक्षर से कई शब्द ,एक शब्द के अनेक अर्थ,एक अर्थ के लिए अनेक शब्द ,का इनका प्रयोग किसी करिश्मे से कम नही लगता था।
        जब किताब की कहानी को ये पढ़ाते थे तो हमे लगता था जैसे हम कोई 3d मूवी देख रहे हो ,हम सभी कहानी में घुस से जाते थे ,खो जाते थे। शेर की आवाज के समय इनकी आवाज दहाड़ने और गर्जन जैसी होती थी ,पूरा क्लास अँधेरे की तरह शांत हो जाता था।और जब वो चूहे या चींटी की बात करते तो उस खामोशी में हमे चींटी की भी आवाज सुनाई देती।हाथी के पैरों की ,जंगल मे बहने वाली तेज हवाओं की सभी चीजों का जीवंत वर्णन करते थे।
  झा sir का मतलब ही होता था हिन्दी।
झा sir अपनी कहानी के माध्यम से हमे बहुत ज्ञान दिया , हिन्दी लिखना ,पढ़ना ,बोलना, सब उनकी ही देन है। मेरी हिंदी की भी रुचि उनकी ही देन है । मेरी राइटिंग का खूबसूरत होना भी उनकी देन है ,मेरे शब्दों का उच्चारण भी उनका दिया हुआ है ,मैं उनका बहुत आभारी हूँ। मुझे पता है मैं कितना भी उनका शुक्रिया अदा कर लू फिर भी मैं उनका कर्ज नही उतार पाऊंगा। फिर भी मैं ह्रदय गम्य लिख कर उन्हें सम्मानित जरूर करूँगा ।
    इतनी सारी खूबियों के बीच ,हर किसी मे कुछ ना कुछ खामी होती है ।sir में भी था।या नही मुझे पता नही?
     Sir के बारे में अक्सर क्लास के लड़के और मैं भी बातें किया करता था कि sir का क्लास की लड़की के प्रति झुकाव है? मैंने भी किसी के मुँह से सुना,कभी देखा नही ,और ना ही  किसी ने सत्यापित किया। पर यह आरोप उन पर था।शायद आज भी हो। उनके चरित्र को लेकर स्कूल के छात्रों में बहस होती रहती थी।
        खैर, इनका घर स्कूल की दीवार से सटा हुआ था,इनकी पत्नी बहुत ही ज्यादा वाला ब्राह्मण थी।किसी दूसरे जात के लोगो से बाते तक नही करती थी।
  Sir , एक दिन मैडम (झा sir की पत्नी) से बहस करके आये थे।वो क्लास में आये और कहते है क्या पढ़ना है ,कोई पीछे से कहता है sir हिन्दी।
     इतना सुनते ही मुझे खड़ा किया और जोर से रसीद दिया मेरे गालों पर।,लगा जैसे करेंट लगा हो।फिर वो पूछते है अब बताओ क्या पढ़ना है,मैंने कुछ नही बोला,वो कहते है,थोड़ी देर पहले हिंदी बोले थे ।अब क्यु नही बोल रहे ,तो मैं आपने आंसू के बीच नाक पोछते हुए बोलता हूँ कि मैं पिछली बार भी नही बोला थी किसी ने पीछे से बोला।इतना बोलते हुए मैं और रो पड़ा।
    वो  किसी को कुछ नही बोले ,मैडम का गुस्सा मुझ पर उतार कर ,पढ़ाने लगे। 
थोड़ी देर बाद ....... वो मेरी तरफ क्षमा भरी निगाहों से देखते है ।पर मेरी हिम्मत नही हो रही थी उनको देखने की। मैंने उन्हें देखा ।उनकी आंखे शर्मिंदा हो चुकी थी।क्योंकि मैं बेवजह उनके हाथों पीट गया था।
 पर मेरे हिन्दी की रुचि की वजह झा sir और उनकी प्रतिभा ही है जिसे देख कर मैं आज भी अचंभित रहता हूँ,प्रणाम झा sir
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SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत का --------24
#IUPKO:-INTERNATIONAL UNION of PURE KAMINA ORGANISATION.आपको यह नाम केमेस्ट्री के शब्द से मिलता जुलता नही लगता??। यह नाम केमेस्ट्री की क्लास में ही रखा गया था।यह iupac नेम के तर्ज पर रखा गया था।
#IUPAC name:-INTERNATION UNION of PURE and APPLIED CHEMISTRY.
    जी हाँ, बिल्कुल , हम सभी लड़के किसी सबक को या तो लय बद्ध करके याद रखते या किसी घटना से ज़ोर कर,इसी क्रम में iupko का निर्माण हुआ।क्योंकि हमें iupac नाम याद रखना था।
        ये तरीका हमे #खुशी ने सुझाया था
#खुशी ,आप सोच रहे होंगे,की ये कैसी होगी।कितनी खूबसूरत होगी इसकी आँखे, बाल ,गाल इसका चलना ,उठना  बैठना , यही सब सोच रहे है ना??? 
        आपकी गलती नही है ,बेचारी, मतलब बेचारा जी हाँ, बेचारा लड़का है।थोड़ा सा दुख होता है ,उसके लड़के होने पर।
   कितनी दफा ,मेरे घर वालो ने मुझे डाटा है कि तुम किसी लड़की से बात नही करेगा,ना ही लड़की का चर्चा करेगा। और हर बार मैं इसी खुशी और सोनल की बात करता था।दोनो का नाम लड़की जैसा था पर ,लड़का था,sry ये मैं नही जानता क्या था???
    #खुशी,एक ढ़ीले ढाले शरीर का मालिक था।शरीर देख कर कोई भी इसे माफ कर देता ,पर इसके जोक्स सुनकर लोग कपिल शर्मा शो भूल जाएंगे। बहुत ही परफेक्ट टाइम पर परफेक्ट जोक्स बोलता था।और सभी लोट पोट हो जाते थे।
      पढ़ाई में सामान्य से थोड़ा कम ही था,राइटिंग ऐसा लिखता की मच्छर भी उस पर नही बैठे। पर बहुत ईमानदार ,बिना किसी छल कपट का लड़का था। इसमें कुछ खास बातें भी थी ,यह मुँह से सिटी बजाकर पूरा गाना गा देता था ,इसकी आवाज अच्छी थी। इस पर गर्व करने वाली एक बात थी इसने स्कूल के दिनों में कभी किसी से झगड़ा नही किया था। और हाँ स्कूल के एग्जाम में कभी भी चीट नही किया था। चाहें फेल ही क्यू ना हो जाये।ये हम दोनों का प्रण था।
  इसकी साईकल बहुत तेज चलती थी।इसकी साईकल की एक खासियत थी।इसके सीट के नीचे सॉकर (स्प्रिंग) लगा हुआ था।जो गड्ढे या ऊपर नीचे वाली जगह में मजा और आराम देता था।मुझे इसका साईकल चलाने में मजा आता था।
         इसने iupko ग्रुप के बारे में सोचा ,और मुझे बताया ,मुझे इसका फुल फॉर्म अच्छा लगा।उसने कहा हम दोस्त एक दूसरे के लिए कमीने है ,पर है तो दोस्त ही ना?, क्यू ना एक ग्रुप बना ले ,मैंने कहा ठीक है बनाओ,ये कहता है बना लिया, मेम्बर तुम ऐड करो।
       इस ग्रुप में खुशी और मैं थे।अगला मैम्बर बाबा बना,क्योंकि उस समय बाबा ही खुशी का करीबी दोस्त था।खुशी एक पूल की तरह था या कहे तो मास्टर कंप्यूटर था जिसका आदेश सभी मानते थे।  ,क्योंकि हम सभी को जोड़ना बुलाना, एक साथ बैठना, ये सब काम खुशी करता था।
आगे अगली पोस्ट में। ..........#बाबा की कहानी
SachinSHvats.


#स्कूल से मेरी नफरत--------25
#बाबा दो थे,एक बाबा मतलब महेंद्र sir जो बूढ़े थे इसलिए सभी बाबा ही कहते थे , दूसरा हमारे क्लास का बाबा ,उत्कर्ष बाबा,,,,,
       उत्कर्ष का नाम बाबा दो वजह से हुआ ,पहले को ऐसे समझिये,जैसे कोई कहता है ना,स्मार्ट मत बनो,पिंगिल मत छाटो, होशियार मत बनो, ठीक इसी तरह हमारे स्कूल में था बाबा मत बनो।और यह कहता हॉ, हम बनेंगे। 
           दूसरी वजह ,हम जिस समाज मे रहते है उस समाज मे ब्राह्मण को सर्व श्रेष्ठ दर्जा प्रदान है ,ऊपर से पुजारी वाला तो डिरेक्टर भगवान से 11G में बात करता है। उत्कर्ष का यह पंच लाइन था। हमहू बाबा,हमर बापो बाबा,हमर बाबो बाबा।
यही समाज की व्यवस्था है , जिस बाबाजी(पंडित) को पेंट पहनने नही आता ,उस पंडित का पैर धोकर पीता है ये समाज। इसी हिसाब से ये हमारे क्लास के बाबा थे, और बाबा वाला गुण तो था ही ,और जाति से ब्राह्मण थे।
    बाबा ,नाटे कद का लड़का है, दाँत सड़ चुका था।ये कहता था।बचपन मे दवाई बहुत खाये थे इसलिए।दाँत सड़ गया। इसकी साईकल  औसत से छोटी थी।उसमें भी इसका पैर नही पहुँचता था।।
  पढ़ाई में ,होम वर्क कर लेता था।उससे ज्यादा कुछ नही।हाथ मे धागा वागा बंधता था।होशियारी में चतुर लोमड़ी को भी हरा दे ऐसा था।
    Iupko इस ग्रुप में जुड़ने के बाद ,और उससे पहले से भी इसकी दोस्ती खुशी के साथ गहरी वाली थी।बहुत  सही चल रहा था इन दोनों का ,साथ में आना जाना ,खाना पीना, दुर्गा मेला देखना।
     खुशी ने इस ग्रुप का नाम जरूर कमीना रखा पर कमीनो वाली कोई बात नही थी। काम अच्छा ही करना था।एक दूसरे की मदद ,हँसना गाना बजाना मौज करना ,सब सही चल रहा था। हम सभी खुश थे।
   दरअसल उम्र के साथ लोगो में बदलाव आते है ।इसमें भी आये ।जहाँ हमारे ग्रुप का लड़का सराफत रखता था।वही उत्कर्ष ने दिखाने के लिए नशा का सेवन शुरू कर दिया था। हम सभी को बहुत बुरा लगा।खास कर खुशी को क्योंकि वो इसका नजदीक का दोस्त था। ख़ुशी ने समझाया,पर ये नही समझा आज तक।,,, हर बार नशा करने के बाद कहता ये आखरी बार है ,इसके बाद कभी नही ,कसम भी कितनी दफा खाया था। हम सभी समझाए पर ये नही समझा।
   बाबा एक पंच लाइन और बोलता था 
मुझे क्या चाहिए ,दो वक्त का #रजनीगंधा,अपुन खुश।
       खुशी दुखी होकर ,इससे दूरियां बनाने लगा।और ये खुद सबसे अलग होता गया।
    एक दिन जब iti में क्रिकेट के लिए सब गए थे ।तो उस दिन इसने सबके सामने सिगरेट पिया ,और कुछ भी था।......(जिसे गोपनीयता की दृष्टि से छिपा रहा हूँ।)
         इसके साथ दे रहे थे।हमारे महान भैया ,विभव भैया।, उस दिन खुशी बहुत गुस्सा हुआ ,यहाँ तक कि इस पर हाथ भी उठा दिया था।, खुशी का आज तक किसी से झगड़ा नही हुआ था।, उस दिन के बाद इन दोनों में काफी अंतर देखने को मिला।
   कल क्लास में शशि sir को इन बातों का पता चला, sir ने 7 रुपया के सिगरेट से होने वाले  हानि को समझाया,और इसकी  कुटाई भी की,शायद इसके घर वालो को भी खबर कर दिया था।
         उस दिन से इसका दोस्तो के बीच सम्मान कम सा गया था।खुशी भी धीरे धीरे जगह अलग बना लिया और बाबा भी अपनी अलग दुनिया बना लिया था।
  ............मुझे दुख है कि दिखावटी दुनिया को दिखावा दिखाने के चक्कर मे मेरा दोस्त नशा करने लगा था।सिर्फ दुसरो को दिखाने के लिए।उसने शुरू किया था।

आगे अगली पोस्ट में........
कौशल के साथ..

SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत-------26
#कौशल उर्फ पोदो, पोदो इसलिए कि इसका साईकल भी सिकन्दर sir की तरह महान था।हैंडल पकड़ने के लिए आपको, रामदेव बाबा के योगा की आवश्यकता पड़ती, चलती साईकल में ताला लगा लेता था। 
         बहुत दूर से बहुत मेहनत करके पढ़ने आता था। पढ़ाई में ठीक ठाक था।कभी टॉप नही किया ईसलिये  ठीक ठाक बोल रहा हूँ।राइटिंग कुछ खास नही थी।सामान्य छात्र जैसी सारी खूबियां थी।
         अब बारी बाहरी रूप रेखा की।इसका रंग मेरे से ज्यादा काला , लगभग कोयले की तरह ,सिर्फ दाँत चमकता था,पर इस बात का इसे कोई गम नही ,मस्त मनमौजी लड़का था। इसके मैथ्स अच्छे थे।
    उत्कर्ष के बाद खुशी की नजदीकी इसी के साथ बढ़ी ,दोनो साथ साथ ही रहने लगे थे।
     कौशल हमारे ग्रुप का टेक्नोलॉजी गुरु था।मोबाइल से रिलेटेड सारी जानकारी इसके पास होती थी।मूवी ,सांग ,लाइव क्रिकेट ये सब क्लास में इसने सबको सिखाया था।
जब 2g था तब fb चलाना , गाना डाउनलोड करना ये सभी को सिखाता था।, बहुत कम बातें करता था ।गिने चुने लड़के से बात करता था। हेजिटेशन से भरा हुआ लड़का था ये।
                 कभी कभी मैच का स्कोर चुपके से सुनाता था ।और हम अभी कान टू कान ट्रांसफर कर देते। बहुत मजा आता था।
  क्विज होने पर इसके सवाल तब भी टेक्नोलॉजी से रिलेटेड ही होते थे।या तो bio से रिलेटेड।
कभी कभी क्लास में लास्ट बेंच पर कुछ अश्लील वीडियो(po**) भी हो जाता था। 
   कुल मिलाकर देखा जाय ,तो अच्छा लड़का था।और किसी का बुरा नही चाहता था। 
     एक बार मैंने इससे झगड़ा किया था।मैंने स्कूल के बाहर इसकी साईकल रोक ली थी।आवारा जैसा लड़का था ही मैं,असमाजिक काम करना मेरी आदत आई थी।उस दिन मैंने इसको गौर से देखा था। कितना विवश था यह पीछे अपने भाई को बैठाए हुए था। 
   लेकिन कुछ दिनों के बाद मेरी इससे अच्छी दोस्ती हो गयी।और तब से आज तक मैंने किसी के साथ ये सब काम नही किया ।हॉ मैं स्वीकारता हूं कि उस दिन मैंने उसके साथ बुरा किया ।क्योंकि मेरे पास ताकत थी जिसका मैंने गलत इस्तेमाल किया।
क्षमाप्रार्थी हूँ मेरे मित्र.......
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SachinSHVats.


#स्कूल से मेरी नफरत ----27
#सोनू सैमसंग, हमारे ग्रुप का ऑर्केस्ट्रा मैन , शिक्षक की अनुपस्थिति में बेंच पिट पिट कर तबला बजाता था। खुशी और बाबा उसमे राग अलापते थे। मैं एक्स्ट्रा ट्यून देता था।कौशल मजे लेता था।
      सोनू जब पहला दिन स्कूल आया था उसी दिन मेरा उससे झगड़ा हो गया। वजह वही थी मैं था राड़ (बदमाश) ,स्कूल में मेरे गाँव से बहुत सारे पढ़ते थे। मेरे परिवार से बहुत  सारे लोगो ने पढ़ाई कर रखा था। तो मेरी क्लास में चलती थी। जहाँ नही चलती वहाँ ,भी चलाता तो झगड़ा हो जाता।
    सोनू पहले ही दिन मेरी जगह पर बैठ गया ,और मेरे से उसका झगड़ा हो गया। दो ,तीन दिन में उसने मुझे समझ लिया ,और मैं भी उसे समझ लिया ।और फिर दोस्ती हो गयी। हर नए स्टूडेंट से मुझे पहले झगड़ा ही होता था। और बाद में दोस्ती ।यही काम मैंने विभव भाई से भी किया था।
     सोनू की आँखे बिल्ली की तरह तेज थी।क्रिकेट का भयंकर वाला फैन था।क्लास छोड़कर भी क्रिकेट खेलता था।वापस आने पर मैं गाली देता तो बोलता भाई ,,, भाई फाइनल था ,गाँव के इज्जत का सवाल था।कमिटी टीम वाली बात थी आदि आदि बहाने।
     मेरे बाद लड़कियों में सबसे ज्यादा इंटरेस्ट यही रखता था।बहुत  सारे दाव पेच इसने मेरे साथ सीखें थे। बहुत सारी जगह पर उलझने पर मैंने इसकी बिना मांगे मदद की थी। और इसे भरोसा भी था। मैं हूँ ही इसकी मदद के लिए।
      दरअसल इसकी बड़ी दी बहुत अच्छी थी पढ़ने में , उसका इसे फायदा मिलता था । पाठक sir इसकी दी को जानते थे। जब ये उनसे मिला और कुछ पैसे उन्हें जमा करने को दिए तो पाठक sir ने जमा ना करके अपने व्यक्तिगत काम मे लगा लिया ।।  कुछ दिन तक इसने पैसा और ना ही रसीद मांगा ,, तब तक सोनू अच्छे लड़के की लिस्ट में था।
जैसे कि माय के बेटा है , वाह वाह सोनू ,इत्यादि टाइप। 
     पर परीक्षा निकट आने पर उसने रसीद मांगा उसके बाद सोनू ने उन्हें दिन रात परेशान कर दिया पैसा मांग मांग कर ,,उसके बाद उन्होंने जो सोनू को मेंटली टॉर्चर शुरू किया ,बहुत भयानक था।
    सोनू रोया नही पर दिल से उनके लिए बदुआ निकलती थी ।  सोनू फिर भी मांगता रहा ,और तब से स्कूल जीवन मे सोनू को sir ने नापसन्द करना शुरू कर दिया।

     एक कहानी फेमस थी सोनू की ,एक दिन सोनू रेलवे क्रॉसिंग पर पाठक sir से मिला,सोनू उनसे अपना 300 रुपया मांगा ,वो उसको कहते है ,बेटा अभी नही है,सामने वाली दुकान से खुल्ला करवा कर आता हूं तो दे दूंगा।कसम से sir वापस लौट कर उसके पास नही आये।और आज तक सोनू को 300 नही मिला।

     लेकिन जब सोनू को माय का बेटा कहते थे ना उस वक्त मुझे मिशन को देख कर दया आता था। कि इसके कितने रुपया बाकी होगा sir के पास।

     हमारा ईमान ही समाज में बचता है और कुछ नही ,पर कुछ लोग उसे भी बेच कर चाट जाते है।

आगे अगली पोस्ट में.....
Sachinshvats..


#स्कूल से मेरी नफरत -------28
शिक्षक की नजर में सभी एक समान है ,ये सही नही है। जब अनिकेत चीटिंग कर रहा था तो कुमोद सिर ने उसका पर्चा छीन लिया ,और जब कन्हैया कर रहा था तब उसे नजर अंदाज कर दिया।
        दरअसल ये बात भी अनिकेत ने बताई है इसमें कितनी सच्चाई है ये आप सभी जानते ही है।
      अनिकेत उर्फ स्मार्टी हमारे ग्रुप का हैंडसम ,सुंदर सुशील, सभी गुणों से भरा हुआ ,सुयोग कर्मठ लड़का ,,,    बहुत  सज्जन लड़का था ,बहुत कम लोगो से दोस्ती किसी से भी दुश्मनी नही। पढ़ाई है अच्छा ।बहुत अच्छा 
            हॉ ,एक खास बात ,महिला प्रेमी था। मतलब लड़कियों के नजर में सरीफ, उम्दा और संस्कारी लड़का था, जो कि उस समय थोड़ा बहुत था भी।
        इसी बात से कुमोद sir भी धोखा खा गए। ये चिट कर रहा था।sir को विश्वास नही हुआ कि इतना मासूम चेहरा लेकर कोई चिट कर सकता है ,पर वो कर रहा था। और sir ने पकड़ भी लिया ।
   Sir ऐसे थे कि वो किसी को माफ नही करते थे चिट करने पर पिटाई होती थी। बहुत बहुत होती थी।पर अनिकेत की मसुमियत ने उसे कम पिटवाया।
       अनिकेत कहता है कि मेरे बगल में उनका छोटा लडका चिट कर रहा था तो उसे कुछ नही कहा ,और मुझे पिट दिया।।  
   अनिकेत के गालों पर चारो उंगली के निशान थे। रोया रोया हुआ चेहरा था। मैने उस दिन पूछा था तो उसने कुछ नही बोला अकेले में चला गया।
    अनिकेत बहुत भोला हुआ करता था।गाल किसी लड़की से कम खूबसूरत नही थे। उस पर चार उंगली का निशान ufff बहुत बुरा लग रहा था।
   मैं बस यही कहना  चाहता हूं कि कोई भी शिक्षक सभी  छात्रों को एक समान दृष्टि से नही देखता ।

यही सच्चाई है।
आगे अगली पोस्ट में...
SachinSHVats


#स्कूल से मेरी नफरत ----29 
 #सचिन ,,,, घर मे माँ ,पापा का मार और स्कूल में शिक्षकों की बेज्जती ,,,,, उस वक्त उसे थका दिया था,कितनी दफा तो आत्महत्या करने का मन कर जाता , फिर संदीप महेश्वरी का मोटिवेशनल वीडियो देखना ,वापस खुद को जिंदा करना बहुत मुश्किल काम था।
    जब आपका प्राण निकल जाए तब आप नही मरते, आप खुद को मारने के बारे में सोचते है ,आप तभी मर जाते है। 
       10वी क्लास की जो उम्र हमारी होती है,उसमे हमे पिता की हर बात गलत ही लगती है।पिता और पुत्र का 36 का आंकड़ा रहता है ।
         मेरी आत्महत्या ना करने की वजह यह भी थी कि मैं सोचता था कि अगर मैं मर जाऊंगा तो पापा की संपत्ति में मेरी दोनो बहने आधा आधा हिस्सा ले लेंगी, वैसे अभी 33%ही लेंगी 

कभी कभी ये सोचता कि जिस साले ने पढ़ाई बनाई हो उसके खानदान में कोई भी बचा होगा तो उसे ढूंढ कर मारू
        वैसे तो उसके पिता बहुत प्यार करते थे उसे पर , पढ़ाई ना करने पर ,बहुत गंदे तरीके से पीटते थे।।  
   बिहार में 10वी की परीक्षा में जो कोई भी टॉपर पढ़ कर बनता होगा ,उसे सुबह 3 बजे उठा कर उसके माता पिता जरूर पढ़वाते होंगे।
 ऐसे सचिन के पापा भी करते थे।सुबह सुबह उठा देते थे।जाड़ा, गर्मी सब में उठाकर पढ़ने को बोलते ।मन ही मन उसे बहुत गुस्सा आता था पापा पर ,,पर वो कुछ बोल नही सकता था।कुछ बोलता तो उल्टे पिटाई भी खानी पड़ती ।
             ठंड के दिन में सुबह 4 बजे कम्बल में कितना मजा आता है ना ?,, कितना प्यारा प्यारा नींद आता है ,सचिन की हर सुबह दर्दनाक होती थी।कुछ दिनों बाद तो सुबह से ही नफरत हो गयी।
उसके पापा उसे दो तीन बार पुकारते ,वो सोया रहता ,अंत मे पिता को गुस्सा आता है और वो उसे एक ग्लास पानी उसके चेहरे पर दे मारते है। इतना ठंड था कि हाथ बाहर नही निकालने का मन था ।पर अब तो पूरा शरीर गीला हो गया था। पापा कहते है जाओ नहा लो, 
       एक बार नजर अंदाज किया सचिन ने ,फिर वो जोर से बोलते है,वो डर कर चला जाता है किसी तरह काँपते हुए स्नान करता है और पढ़ाई को बैठता है।
        पापा क्या करते थे ,वो सचिन से पूरी किताब के क्वेश्चन आंसर रेडी करवा लेते फिर उसे सुनते।तैयारी इस तरह से हो गयी थी कि ,पापा  एक लाइन या शब्द बोलते ,सचिन पेज no चैप्टर तक उन्हें सुना देता ,की इस चेप्टर के इस जगह पर लिखा हुआ है न?,, 
   एग्जाम से पहले तक मे तैयारी पूरी हो गयी थी।सचिन को विश्वास था ।........
SachinShVats.

#स्कूल से मेरी नफरत ------30
स्कूल में हर तीन माह पर परीक्षा होती थी। तिमाही, छमाही ,नमाही ,और आखरी में वार्षिक परीक्षा। पहली परीक्षा में कम ,दूसरी में उससे ज्यादा ,तीसरी में उससे ज्यादा और अंत वाले में सबसे ज्यादा आता था।जितना बड़ा सलेब्स उतना अंक आता था।
     पिता जी ने 10 वी की तैयारी अपनी आँखों के सामने करवाया ,और परीक्षा देने के लिए कही दूर अकेले छोड़ दिया था।
     मेरा आग्रह है आप सभी से  जब कभी भी आपके बच्चे की परीक्षा हो आप उसके करीब रहे ।इससे बच्चे को हौसला मिलता है और अच्छे परिणाम भी आते है 
        मेरा हौसला पहले ही टूट गया,मैं अकेले जाने के पक्ष में नही था। गुस्सा भी आया ,पर पिताजी की बातों को ना मानने पर जो होता ,उससे अच्छा था चला जाना, मैं एक पहचान वाले के यहाँ ठहरा ।
       उनका स्वभाव मेरे से विपरीत था।मैं उनसे आज भी नफरत करता हूँ, परीक्षा के दौरान मैं बाइक से एक्सीडेंट कर गया,पूरा पैर जख्मी हो गया ,बहुत दर्द होता था छटपटाता था मैं ,मुझे नींद नही आती थी।मच्छर आदि आदि बहुत परेशानी थी ।आधी नींद होने पर भी मैं परीक्षा दिया ,,उन 7 ,8 दिनों मैने अजीबो अजीब खाना खाया,बहुत ताने  सुने ,
    और जब पिता जी फ़ोन करते तो ,मुझशे पूछते तुम ठीक हो?? मैं हॉ कह देता,पर अंदर ही अंदर बहुत  रोता, कहाँ आकर फस गया मैं।
    अच्छे लोग हर जगह होते है,, वहाँ एक नौकरानी थी जो मेरे लिए रात के खाने बचा कर रखती थी।सुबह उतनी जल्दी नहा धोकर वही बासी खाना खाया और एग्जाम देने गया। परीक्षा अच्छी जा रही थी।मैं एक भी सवाल नही छोड़ता था।
       आप जानकर हैरान होंगे कि एक दिन भी बिना किसी तरह का जतरा बनाये परीक्षा देने गया था।सभी बच्चे दही ,शक्कर इत्यादि को मुँह में रखकर जतरा बनाकर एग्जाम देने आते मैं बासी रोटी खा कर एग्जाम दिया। 
      3 एग्जाम के बाद मेरा एक्सीडेंट हो गया था बाकी एग्जाम दर्द से कराह कर दिया लंगड़ाते पैर ।
     जिस दिन एक्सीडेंट हुआ था उसके अगले दिन मैथ्स का एग्जाम था।मैंने बहुत तैयारी कर रखी थी ,मुझे लगा मैं एग्जाम नही दे पाऊंगा ,पर  पापा ने दवाई बताया वही खा कर एग्जाम दिया और सबसे ज्यादा मार्क्स लाया मैथ्स में ही।
     मेरी कॉपी से कॉपी करने वालो की संख्या कम नही थी,मैं सब को उतारने देता ।परीक्षा के बाद सबने कहा भाई पास हो गए। कोई 2nd  कोई 3rd किसी ने 1st नही बोला।
   मैंने अपना रिजल्ट NH road  पर खड़ा होकर देखा था।डर था और ऐसा की लग रहा था कि सबकुछ यही रिजल्ट है। जिंदगी वही मौत वही।
    रिजल्ट आया ,खुद से पहले दो किसी और का देखा था दोनो 2nd डिवीजन ,मेरे तो आंसू निकल गए थे।और बहुत  हिम्मत करके खुद का रिजल्ट देखा , 80% जान में जान आगयी। खुशी के मारे बहुत जोर से चिल्लाया ।
   चारो तरफ खुशी का मंजर झूम उठा था।पिता जी थोड़े ना खुश थे उन्हें स्टेट टॉपर बेटा चाहिए था।पर बेटा यहाँ डिस्टिक में ही रह गया था।
    धीरे धीरे वो भी भूल गये और ......

और 10वी का वो रिजल्ट सिर्फ और सिर्फ डेट ऑफ बर्थ देखेने लायक रह गया है।
     मैंने 10 तक कि पढ़ाई सिर्फ और सिर्फ मार के डर से की वो भी पिता जी की जिद्दोजहद की वजह से ।
        इसके बाद से आज भी मेरे अंदर परीक्षा के परिणाम को लेकर कोई विशेष उतावलापन ,या डर नही देखेने को मुझे मिलता है।

यह आखरी पोस्ट है।.   #स्कूल_से_मेरी_नफरत_का. आज नही लिखूंगा आगे अगली पोस्ट में।☺️☺️☺️
   SachinSHVAts.



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