हिंदी दिवस

हिन्दी दिवस
     #सेमिनार हॉल
वैसा ही माहौल जैसा सोचा था ,वक्ता और श्रोता दोनों की कमी , और क्यू ना हो भाई, यह हिन्दी दिवस है कोई फ्रेशर पार्टी थोड़े ही है, जो हम आश्चार्य आँखों से उनकी तरफ देखते ।
                                      इसमे सिर्फ छात्रों की विफलता नही थी । जो भी वक्ता थे कोई भी पूर्व तैयारी के साथ नही आये थे । मुझे तो ऐसा महसूस होता था कि हिंदी दिवस ही समय से पूर्व आ टपका हो।
        असल मजाक हिंदी का तब बना और शर्म भी उतनी ही आ रही थी  जब हिंदी दिवस के बैनर पर "हिंदी दिवस" ही सिर्फ हिंदी में लिखा था बाकी सारी जानकारी अंग्रेजी में लिखी हुई थी।
        मेरा इस पर लिखना किस हद तक सही है यह बात आपलोगो को अंत मे समझ आएगी ।
क्योंकि आज शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाना बन कर रह गया है ,हम में से किसी को भी भाषा से प्रेम नही रह गया है , ना हमे , ना ही शिक्षकों को ,पूरा पाठ्यक्रम को पढ़ाने की फुर्सत तो है ही नही ,बाहरी दुनिया क्या समझाएंगे । और फिर कल्पना करेंगे हिंदी को पूरे भारत मे बोला जाय ।
              अंसभव है यह कल्पना ,आत्मा को पीड़ा पहुँचाओगे क्योंकि बिना कर्म के कल्पना बिना बिंदी की नारी लगती है ।
                         आज के युवा में सिर्फ नौकरी पाने की ललक तीव्र है ,उन्हें लगता है ,,  ""बी. ए. किये , एम. ए. हुई, नौकरी मिली ,पेंशन लिये और मर गये""। क्या यही असल मतलब की जिंदगी है।
     लेकिन गुरु #महर्षि अरविंद घोष के शब्दों में पढ़ाई का अर्थ सिर्फ नौकरी पाना नही वरन अपने ज्ञान रूपी दीपक से पूरे समाज ,राष्ट्र को प्रज्वलित करना है ।
          इसके लिये हमें बहुत मेहनत करनी होगी क्योंकि #मस्त कलकतवी ने ठीक ही लिखा है ;-
सुर्ख़ रु होता है इंसाने ठोकरें खाने के बाद
रंगलाती है हिना पत्थर पर घिस जाने के बाद।
   रंग लायेगी हमारी मेहनत । एक न एक दिन
   क्योंकि" संकल्प का कोई विकल्प नही होता "

 लोग कहते है कि तुम अकेला बदलाव ला पाओगे
मैं कहता हूं अगर आप ने यह पढ़ा लिया तो बदलाव आगया।
        सवामी जी कहते थे कि उनके विचार जैसे सिर्फ 100 लोग हो जाए तो यह धरती खुशहाल हो जाएगी।। संदीप महेश्वरी (मोटिवेशनल स्पीकर)कहते है कि मेरे जैसा सिर्फ 10000 लोग हो जाये तो पूरे दुनिया को खुशी से रखा जा सकता है और #मैं  कहता हूं कि मेरे जैसे सोच के सिर्फ एक और हो जाये , तो  पूरी दुनिया को सुखी रखा जा सकता है । (मैं इसमे सफल जरूर हूंगा यह मेरा विश्वाश है ।)
            अभी हमारे देश की राजनीति का हाल कितना बुरा है , इस बुरे हाल से निकालने की क्षमता सिर्फ और सिर्फ हिंदी में है क्योंकि राष्ट्रकवि दिनकर जी ने लिखा था :-जब जब राजनीति लरखराई है , तब तब साहित्य ने इसका हाथ थामा है ।
   हिन्दी देश मे रानी की तरह रह सकती है दासी की तरह नही (गाँधी जी)और राजनेताओं ने आज तक इसे दासी ही बना रखा है ।
विश्व स्तर पर हमें खड़ा होना है तो शायद हमें अंग्रेजी की आवश्यकता पड़े
लेकिन अगर पूरे स्वाभिमान के साथ खड़ा होना है तो हमे हिंदी में ही जीना होगा ।

आखिर में जब कमाई खाते हो हिंदी की
तो फिर जुबान क्यू मचलती है अंग्रेजी की(मित्र सहयोग से)
     #Sachin_sh_vats.




      

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