'अमर देसवा' उपन्यास एक नजऱ , AMAR DESWA written by Praveen kumar

'आपदा में अवसर' यह तो सबकी जुबाँ पर है पर आपदा में नागरिकता, व्यवस्था, मनुष्यता, शासन-प्रशासन की जाँच करती है "अमर देसवा"। हर जगह ईश्वर नहीं पहुँच सकते , इसलिए उन्होंने मानव में मानवता दी। हर व्यक्ति के पास कुछ अधिकार होने चाहिए। जिससे वह आधारभूत चीजों तक अपनी पहुँच सुनिश्चित कर सके। इसलिए राष्ट्र में नागरिकता की बात की गई है। एक अकेले आदमी की वैसी शक्ति जिसमें सभी शक्ति निहित हो। वह अपने समाजिक और राजनीतिक अधिकार को अच्छे से समझता हो। कर्तव्यों को अपने जीवन का आधार मानता हो। लेकिन इस महामारी ने मनुष्यता और नागरिकता दोनों को तार-तार कर दिया। "डाकसाहब! यह भी एक नियतिवादी ख़्याल है। मैं कोई हरिश्चंद्र नहीं हूँ जो सत्य और असत्य की बात करूँ! मैं साधारण बात कर रहा हूँ। नागरिक अधिकार की बात कर रहा हूँ। क्या हमें इतना भी हक़ नहीं कि हम कीचड़ में सुअरों की ज़िंदगी न जीएँ? आप तो अघोरी बाज़ार के पहले मोड़ पर क्लीनकी खोले हुए हैं और ख़ुद आते हैं सुन्दर नगर से। कभी अंदर की सड़क पर आइए डाकसाहब! यथार्थ से सामना होने से अवधारणाएँ बदल जाएँगी।" ...